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नींव के पत्थर- राम मंदिर निर्माण में उत्तराखंड की बेटी का योगदान

शकुन्तला बिष्ट नायर को याद करने का मौका

देहरादून। अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर 22 जनवरी से हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था के बड़े केंद्र के रूप में पुनर्स्थापित होने जा रहा है और इसकी नींव में जो पत्थर है, उसका संबंध उत्तराखंड से है। वैसे तो राम मंदिर आंदोलन में बढ़ चढ़ कर योगदान देने वाले महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्यनाथ और महंत योगी आदित्यनाथ का संबंध भी उत्तराखंड से रहा है किंतु आज हम बात कर रहे हैं देहरादून की बेटी शकुंतला बिष्ट की। इतिहास के पन्ने पलटने पर हमें इसका बोध होता है जो उत्तराखंडी स्वाभिमान को चरम पर पहुंचाता है।

सर्वविदित है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन 1949 में जब अयोध्या में रामलला जन्मभूमि स्थित विवादित परिसर में प्रकट हुए तो वहां तुरंत ही पूजन प्रक्रिया आरंभ हो गई थी। उस सम्पूर्ण प्रक्रिया में तत्कालीन फैजाबाद के कलेक्टर के.के. नायर के साथ उनकी पत्नी शकुन्तला बिष्ट नायर की प्रमुख भूमिका थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री से लेकर संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री तक ने परिसर से देव प्रतिमाओं को हटाने का निर्देश दिया था, किंतु फैजाबाद के तत्कालीन कलेक्टर के.के. नायर ने यह कृत्य करने से साफ इनकार कर दिया था। इस पर सरकार ने उन्हें निलंबित भी किया, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनका निलंबन निरस्त कर दिया था। बाद में 1952 में उन्होंने आईसीएस की नौकरी से स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली। बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी प्रेरणा शक्ति और अत्यंत धर्मभीरू उनकी पत्नी शकुंतला बिष्ट उत्तराखंड मूल की थी। देहरादून के दिलीप सिंह बिष्ट के संपन्न परिवार में जन्मी शकुन्तला बिष्ट जब विनबर्ग गर्ल्स हाई स्कूल मसूरी में पढ़ रही थी तो वहां वह केरल मूल के निवासी और यूपी कैडर के आईसीएस अधिकारी के. के. नायर के संपर्क में आई और इसी मुलाकात में दोनों में प्रगाढ़ता इस कदर बढ़ी कि 20 अप्रैल 1946 को वे दोनों एक दूजे के हो गए और परिणय सूत्र में बंध गए।

शकुन्तला बिष्ट ने इसके साथ ही बिष्ट सरनेम छोड़ कर सदा के लिए शकुन्तला नायर हो गई। श्रीमती शकुन्तला के पति पति कडांगलाथिल करुणाकरण नायर यानी के.के. नायर का जन्म 11 सितंबर 1907 को केरल के अल्लेप्पी में हुआ था और उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय, बारासेनी कॉलेज, अलीगढ़ (आगरा विश्वविद्यालय) और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से पढ़ाई की। 1930 में वह भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए और गोंडा (1946), फैजाबाद (1 जून 1949 – 14 मार्च 1950) तक उत्तर प्रदेश में विभिन्न जिलों में कलेक्टर सहित कई पदों पर कार्य किया। अत्यंत स्वाभिमानी के.के. नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। नायर अत्यंत धर्म परायण व्यक्ति थे। शायद यही कारण था कि आज जिस राम मंदिर के लोकार्पण के स्वप्न को सनातन धर्मावलंबी साकार होते देख रहे हैं, उसकी नींव में के.के. नायर और उनकी पत्नी शकुन्तला बिष्ट नायर का बहुत बड़ा योगदान है।

सेवानिवृत्ति के बाद नायर दंपत्ति ने देवीपाटन और फैजाबाद (अब अयोध्या) को ही अपना कर्मक्षेत्र बनाया और वहीं स्थाई निवास भी बना दिया।
इस दंपत्ति के राम मंदिर की आधारशिला बनने का ही नतीजा था कि श्रीमती शकुन्तला नायर 1952 में गोंडा वेस्ट (अब कैसरगंज) सीट से लोकसभा के चुनाव में वे हिंदू महासभा के टिकट पर भारी बहुमत से विजयी हुई। वह 1962 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य रहीं और 1967 में जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश के कैसरगंज क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुनी गईं। वे कुल तीन बार लोकसभा के लिए चुनी गई। लोगों में इस दंपती के प्रति अगाध आस्था इस कदर थी कि वे यहां प्रखर हिंदुत्व का प्रतीक बन गए। लोगों की श्रद्धा का आलम तो देखिए, 1967 के लोकसभा चुनाव में जनता ने उनके ड्राइवर को भी निर्वाचित कर दिया। ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं। श्रीमती शकुन्तला बिष्ट नैयर आज इस दुनिया में नहीं हैं किंतु उनकी आत्मा आज राममंदिर की परिकल्पना को साकार होते देख निश्चित रूप से प्रफुल्लित हो रही होगी।

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