क्यों हम हर अपराध के बाद जेंडर की लड़ाई शुरू कर देते है ।
समीक्षा सिंह
हाल ही में मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले में सोनम रघुवंशी नाम की महिला ने अपने पति की हत्या की साजिश रचाई और लोगो के साथ मिलकर उसको अंजाम दिया , ये कोई पहला मामला नही है . हर दिन हम किसी न किसी दर्दनाक खबर को सुनते है – कभी महिला , पति के हत्या कर देती है , कभी पति, पत्नी को मार डालता है , कही रेप होता है ,तो कही झूठे आरोप लगते है .
लेकिन हर बार अपराध के बाद असली मुद्दे पर चर्चा करने की बजाय हम जेंडर की लड़ाई शुरू कर देते है – मर्द बेनाम औरत . एक पक्ष कहता है की मर्द खतरनाक है , दूसरा पक्ष कहता है की महिलाएं कानून का गलत फायदा उठा रही है .
असल में , अपराधी का लिंग नहीं होता , उसकी सोच अपराधी होती है .
हाल ही में महारष्ट्र में राधिका लोखंडे न शादी के कुछ हफ्तों बाद ही अपने पति की हत्या कर दी . मुंबई के नागेश गायकवाड़ ने अपनी पत्नी को पीट पीटकर मार डाला . श्रद्धा बाकर हत्याकांड में आफ़ताब ने अपनी प्रेमिका को टुकडो में काट डाला . इन सब मामलो में कभी अपराधी पुरुष है , कभी महिला – लेकिन हर बार मुद्दा बनता है जेंडर का , कोई असली केस , गन्दी मानसिकता पर बात ही नहीं करता.
अगर लोग औरत और मर्द की लड़ाई में ही उलझे रहेंगे तो हर दिन कोई श्रद्धा मरेगी , कोई सोनम अपने पति को मार देगी और निर्भया जैसे ना जाने कितने और केसेस सामने आते रहेंगे .
अब वक़्त आ गया है की हम समझे की हमें अपने बच्चो को इंसानियत , सहानुभूती और सम्मान सीखाना है .यह लड़ाई मर्द या औरत की नहीं है – ये लड़ाई अपराध और बीमार मानसिकता के खिलाफ है।