नई दिल्ली। भारत के वित्तीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पहल, प्रधान मंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई), बुधवार को अपनी 10वीं वर्षगांठ मना रही है। 2014 में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई यह योजना, वित्तीय समावेशन के लिए एक वैश्विक मानक बन गई है, जो देश के सबसे दूरदराज के इलाकों में भी बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने में सफल रही है।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान इस योजना की सराहना करते हुए इसे “प्रधान मंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व का आदर्श” बताया। उन्होंने कहा कि इस योजना का निर्णय समावेशी विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पदभार संभालने के कुछ महीनों के भीतर लागू किया था।
डॉ. सिंह ने कोविड-19 महामारी के दौरान पीएमजेडीवाई की सफलता को रेखांकित करते हुए कहा कि इस योजना ने लगभग 80 करोड़ परिवारों में भूखमरी रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इसे वित्तीय समावेशन में एक “गेम-चेंजर” बताया और कहा कि इस योजना ने शून्य बैलेंस खाता, निःशुल्क रूपे कार्ड, और ओवरड्राफ्ट जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव की चर्चा करते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि जनधन खाताधारकों में से 55.6 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो इस योजना के महिला सशक्तिकरण के प्रति योगदान को दर्शाता है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को इस निर्णायक कदम के लिए धन्यवाद दिया और इस योजना को भारत के वित्तीय सुधारों में से एक सबसे बड़ा कदम बताया।
डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि इस योजना ने बैंकिंग को आम नागरिकों के दैनिक जीवन का हिस्सा बना दिया है, और इससे भारत वित्तीय समावेशन के वैश्विक मानकों के बराबर आ गया है। उन्होंने जन धन योजना के एक दशक पूरे होने पर इसे आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में भारत की यात्रा में एक मील का पत्थर बताया।