नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को महाराष्ट्र में भी झटका लगा. बीजेपी ने महाराष्ट्र में अजित पवार की पार्टी NCP और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. महाराष्ट्र की 48 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 28 पर चुनाव लड़ा और उसे महज 9 सीटों पर जीत मिली. वहीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 7 पर जीत हासिल की. NCP ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे एक पर जीत मिली. साल 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 23 सीटें मिली थीं. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) ने महाराष्ट्र में बीजेपी के खराब प्रदर्शन की वजह NCP के साथ उसके गठबंधन को बताया है.
‘भाजपा कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आया NCP का साथ’
RSS से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में प्रकाशित एक आर्टिकल में लोकसभा चुनाव के नतीजों को BJP नेताओं और कार्यकर्ताओं के ‘ओवर कॉन्फिडेंस का रियलटी चेक’ बताए जाने के हफ्ते भर बाद संघ से जुड़े एक मराठी साप्ताहिक ने महाराष्ट्र BJP के खराब प्रदर्शन के लिए अजीत पवार के नेतृत्व वाली NCP के साथ गठबंधन और राज्य में पार्टी, उसके कार्यकर्ताओं और NDA सरकार के बीच संवाद की कमी को जिम्मेदार ठहराया है. ‘कार्यकर्ता हताश नहीं, बल्कि भ्रमित है’ शीर्षक वाली कवर स्टोरी में कहा गया है, ‘हर BJP कार्यकर्ता, लोकसभा चुनाव (महाराष्ट्र में) में पार्टी की असफलता का जिम्मेदार NCP के साथ गठबंधन को बता रहे हैं. यह साफ है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं को एनसीपी के साथ हाथ मिलाना पसंद नहीं है. यहां तक कि भाजपा के नेता भी यह जानते हैं.
‘BJP-शिवसेना का गठबंधन हिंदुत्व आधारित’
आर्टिकल में आगे कहा गया कि BJP और शिवसेना का गठबंधन हिंदुत्व आधारित है और इसलिए यह ‘स्वाभाविक’ है. ‘कुछ अड़चनों के बावजूद, दशकों पुराना भाजपा-सेना गठबंधन स्वाभाविक माना जाता है, लेकिन NCP के साथ आने से नाराजगी थी. लोकसभा के नतीजों ने इस नाराजगी को और बढ़ा दिया. पार्टियां और नेता अपनी गणनाएं करते हैं, लेकिन अगर वे गलत हो गए तो क्या होगा? इस सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए.’
आर्टिकल में दावा किया गया है कि भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो कार्यकर्ताओं को नेता बनाने की प्रक्रिया का पालन करती है. इसमें कहा गया है कि पार्टी कार्यकर्ताओं को अब लगता है कि इस प्रक्रिया को कमतर आंका गया है. ‘जमीनी स्तर के पार्टी पदों का इस्तेमाल पार्टी के विकास के लिए किया जाना चाहिए. यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी इस बात पर आत्मचिंतन करे कि वह ये पद किसे दे रही है, मूल पार्टी कार्यकर्ताओं को या बाहर से आए लोगों को.’
आर्टिकल में यह भी सवाल उठाया गया है कि BJP के आपातकाल विरोधी संघर्ष और राम मंदिर आंदोलन के दौरान बलिदान की कहानियां इस साल अक्टूबर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में युवा मतदाताओं को प्रभावित करेंगी. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से, जिसमें भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रही, RSS के कई नेता पार्टी की कमियों का ‘विश्लेषण’ कर रहे हैं. इनमें RSS प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हैं.