नेपाल में पिछले तीन-चार दिनों में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुए उनके नतीजे सोमवार की आधी रात को सामने आए। इस नाटकीय घटनाक्रम में सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) ने नेपाली कांग्रेस के साथ नया गठबंधन बनाने को लेकर समझौता कर लिया। समझौते के तहत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउबा बारी-बारी से सरकार का नेतृत्व करेंगे। इन दोनों नेताओं ने सरकार बनाने के संबंध में अर्धरात्रि को जो समझौता किया इससे जाहिर होता है कि वे दिन के उजाले में नेपाल की समकालीन राजनीति के साथ फरेब वाला समझौता करने से भयभीत थे।
देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां और उनके दो कद्दावर नेताओं ने नई गठबंधन सरकार बनाने को लेकर जिस तरह का निर्णय लिया वह नेपाल की लोकतांत्रिक राजनीति को ढलान की ओर ले जाता है। संविधान और लोकतंत्र के नाम पर किए गए इस राजनीतिक समझौते से देश का राजनीतिक भविष्य एक बार फिर अनिश्चितता की ओर बढ़ रहा है। समझौते के मुताबिक, पहले ओली डेढ़ साल के लिए प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे और उसके बाद देउबा के लिए अपना पद छोड़ेंगे। लेकिन नेपाल के राजनीतिक उतार-चढ़ाव को देखकर कहना मुश्किल है कि ओली समझौते के मुताबिक अपने वादे को निभाएंगे।
ओली और देउबा के बीच में सत्ता के लिए जो समझौता हुआ है, वह कितने दिन तक चल पाएगा अभी से कहना मुश्किल है क्योंकि दोनों नेता जिन दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे वैचारिक रूप से धुर विरोधी हैं। इसलिए कहा जाना चाहिए कि कपड़ों की तरह गठबंधन का सहयोगी बदलने के पीछे कोई सिद्धांत नहीं, बल्कि सत्ता की चाह काम करती है। हालांकि सत्ता के इस उलटफेर के भी कुछ सकारात्मक संदेश हैं।
नेपाली संसद की कुल 275 सीटों में से 88 नेपाली कांग्रेस और 79 सीटें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के पास हैं। मात्र 32 सीटें वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के नेता प्रचंड जोड़-तोड़ करके प्रधानमंत्री बन जाते हैं। ओली और देउबा के समझौते से इस तरह की प्रवृत्ति को धक्का पहुंचा है। इसे नेपाली राजनीति के लिए शुभ कहा जाना चाहिए।