नई दिल्ली। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 9 जुलाई को ओडिशा के भुवनेश्वर में राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (NISER) के 13वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि NISER की यात्रा अभी कुछ वर्षों की ही है, लेकिन कम समय में ही इसने शिक्षा जगत में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि यह संस्थान विज्ञान की तार्किकता और परम्परा के मूल्यों को समन्वयित करते हुए आगे बढ़ रहा है।
छात्रों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सार्थक शिक्षा और ज्ञान वही है जो मानवता की बेहतरी और उत्थान के लिए उपयोग किया जाए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वे जहां भी कार्य करेंगे, अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता के सर्वोच्च स्तर को प्राप्त करेंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अपने कार्य क्षेत्र में उपलब्धियों के साथ-साथ वे अपने सामाजिक दायित्वों का भी पूरी जवाबदेही के साथ निर्वहन करेंगे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने सात सामाजिक पापों की परिभाषा दी है, जिनमें से एक है निर्दयी विज्ञान। अर्थात मानवता के प्रति संवेदनशीलता के बिना विज्ञान को बढ़ावा देना पाप करने के समान है। उन्होंने छात्रों को गांधी जी के इस संदेश को हमेशा याद रखने की सलाह दी।
छात्रों को राष्ट्रपति ने हमेशा अपने भीतर विनम्रता और जिज्ञासा की भावना बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने ज्ञान को एक सामाजिक उद्यम के रूप में समझें और इसका उपयोग समाज और देश के विकास के लिए करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि विज्ञान के वरदान के साथ-साथ इसके अभिशाप का खतरा भी हमेशा बना रहता है। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत तेजी से बदलाव हो रहे हैं। नई तकनीकी प्रगति मानव समाज को क्षमताएं प्रदान कर रही है, लेकिन साथ ही मानवता के लिए नई चुनौतियां भी पैदा कर रही है। जैसे CRISPR-Cas9 ने जीन एडिटिंग को बहुत आसान बना दिया है। यह तकनीक कई असाध्य बीमारियों के समाधान की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। हालांकि, इस तकनीक के उपयोग से नैतिक और सामाजिक मुद्दों से जुड़ी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं।
इसी तरह, जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में प्रगति के कारण डीप फेक की समस्या और कई नियामक चुनौतियां सामने आ रही हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि फंडामेंटल साइंस के क्षेत्र में प्रयोग और शोध के परिणाम आने में अक्सर बहुत समय लगता है। कई बार कई वर्षों तक निराशा का सामना करने के बाद सफलता मिली है। उन्होंने छात्रों से कहा कि वे कई बार ऐसे दौर से गुजर सकते हैं जब उनके धैर्य की परीक्षा होती है। लेकिन उन्हें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। उन्होंने उन्हें हमेशा याद रखने की सलाह दी कि मौलिक अनुसंधान में विकास अन्य क्षेत्रों में भी बेहद फायदेमंद साबित होता है।