सुप्रीम कोर्ट ने सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A की वैधता रखी बरकरार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सिटीजनशिप एक्ट (Citizenship Act) की धारा 6A की वैधता पर अपना फैसला सुनाते हुए इसे बरकरार रखा है। Chief Justice of India (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि धारा 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करती है जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं और ठोस प्रावधानों के तहत आते हैं।

धारा 6A का इतिहास और महत्व
सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A को 1985 में असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए संशोधन के बाद जोड़ा गया था। इस समझौते के तहत भारत आने वाले लोगों की नागरिकता के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में यह धारा जोड़ी गई। धारा 6A के अनुसार, जो लोग 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश समेत अन्य क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इस प्रावधान ने असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की अंतिम तारीख 25 मार्च 1971 तय कर दी।

केंद्र सरकार का हलफनामा
दिसंबर 2023 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वह भारत में अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डेटा नहीं दे पाएगा, क्योंकि प्रवासी चोरी-छिपे आए हैं।

फैसला और असहमति
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की वैधता को 4:1 के बहुमत से बरकरार रखा। जस्टिस जे पारदीवाला ने असहमति जताते हुए इसे संभावित प्रभाव से असंवैधानिक बताया। बहुमत में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा शामिल थे।

कोर्ट ने यह भी कहा कि असम में लगभग 40 लाख प्रवासी हैं और पश्चिम बंगाल में 56 लाख प्रवासी हैं। हालांकि, इसका प्रभाव असम में ज्यादा है, इसलिए असम को अलग करना वैध है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 1971 की कटऑफ तिथि तर्कसंगत विचार पर आधारित है, क्योंकि ऑपरेशन सर्चलाइट के बाद पूर्वी पाकिस्तान से पलायन बढ़ा है।

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