राजधानी देहरादून की बात करें या फिर उत्तराखंड के दूसरे नगरों की यहां की आता है व्यवस्था ने सभी को निराश किया है। बात चाहे पर्यटन के दौरान यातायात व्यवस्था की हो या फिर दैनिक तौर पर चलने वाली किसी नगर की हर मूर्ति पर उत्तराखंड में यातायात का दारा अभी तक पटरी पर नहीं आ पाया है। यात्रा सीजन में जिन दुश्वारियां से पर्यटक जूझते हैं वह किसी से छुपा नहीं है। उत्तराखंड के बड़े नगरों में भी यही दिक्कत है सामने आती है जिनमे दैनिक तौर पर चलने वाला यातायात नियंत्रण से बाहर हो चुका है। राजधानी देहरादून में तो जिस प्रकार के हालात पैदा हो गए हैं उसके आगे अब पुलिस एवं परिवहन विभाग भी घुटने टेक चुका है और अब तक लागू किए गए अधिकांश प्लान कसौटियों पर खरे साबित नहीं हो पाए हैं। राजधानी में तो यातायात प्रबंधन इस बुरी तरह से बिगड़ चुका है कि अब इसकी चपेट में आपातकालीन सेवाएं भी आ गई है। अक्सर एम्बुलेंस राजधानी की लचर यातायात व्यवस्था से जूझती नजर आती है।
देहरादून एवं हरिद्वार यह दोनों ही ऐसे जनपद है जहां यातायात का दबाव सबसे ज्यादा अधिक है और यहां किए गए अब तक के प्रयास यहां के परिवहन तंत्र को सही तरीके से पटरी पर चलाने में कामयाब नजर नहीं आए हैं। सबसे अधिक परेशानियां स्कूल के समय में देखने को मिली है इसके निदान के लिए यातायात पुलिस ने कुछ परिवर्तन करने का प्रयास किया। कुछ स्कूलों के लिए ट्रैफिक रेगुलेटरी जारी की गई है जिसमें अभी 21 स्कूलों को शामिल किया गया है जो अलग-अलग समय पर अलग-अलग कक्षाओं के बच्चों को स्कूल बुलाएंगे और उनकी छुट्टी करेंगे। पुलिस का यह प्रयोग सुबह स्कूल लगने के समय तो जरूर थोड़ा असरदार नजर आया है लेकिन स्कूलों के अवकाश के समय हालात आज भी हालात पहले जैसे ही बने हुए हैं। स्थिति यह बन गई है कि अब तो कोई भी प्रयास कारगर होता हुआ नजर नहीं आ रहा है मुद्दा केवल स्कूलों की छुट्टी के समय लगने वाले जाम का नहीं है बल्कि दिन के अन्य समय भी राजधानी के अधिकांश सड़कों में जाम जैसी व्यवस्था ही बनी रहती है। यातायात पुलिस को चिंता छुट्टी के समय लगने वाले जाम के कारण वीआईपी मूवमेंट को लेकर है ना की आम जनता के हित और सुविधा से। स्कूलों के लिए जारी किए गए निर्देशों के पीछे भी वीआईपी मूवमेंट से लेकर शासकीय कार्यों एवं आपातकालीन सेवाओं का हवाला दिया है लेकिन हकीकत तो यह है की देहरादून की यातायात व्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में बुरी तरह से विफल साबित हुई है।
यातायात अधिकारी स्कूलों के समय में फिर बदलकर यदि सुचारू यातायात प्रबंधन की उम्मीद रख रहे हैं तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि इससे अधिक कुछ हासिल होने वाला नहीं है। व्यवस्था तब तक नहीं सुधरेगा जब तक सड़कों के किनारे अतिक्रमण और ठेलिया हटाई नहीं जाएगी और सड़कों का चौड़ीकरण नहीं होगा। हालांकि व्यापक तौर पर पिछले कुछ समय में सड़क चौड़ी की गई है लेकिन अत्यधिक वहां का दबाव भी अब यात्रा संचालक को प्रभावित कर रहा है। फिलहाल लगता नहीं की सरकार और जनपद पुलिस के पास यातायात व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने के लिए कोई बड़ा मास्टर प्लान है। व्यवस्था है राम भरोसे चल रही है और आम जनता सड़कों पर रेंग रेंग कर अपने वाहनों के साथ सड़क रही है। वैसे भी पुलिस कुछ प्रयास तो सड़क पर करती ही है लेकिन जब जिम्मेदारियां आपसी समन्वय से उठाने की जरूरत हो तो यहां वाहन चालकों का सहयोग नजर नहीं आता। बिना आपसी सहयोग के किसी भी व्यवस्था को चलाना संभव नहीं है और यही सिद्धांत यातायात संचालन की व्यवस्था पर भी लागू होता है