नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें बच्चों के साथ यौन अपराध से संबंधित वीडियो देखना, डाउनलोड करना और अपने पास रखना अपराध करार दिया गया है। कोर्ट ने इसे पॉक्सो एक्ट की धारा 15(1) के तहत अपराध मानते हुए कहा कि भले ही किसी व्यक्ति का इरादा ऐसे वीडियो को प्रसारित या साझा करने का न हो, फिर भी यह अपराध की श्रेणी में आएगा।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पादरीवाला की बेंच ने इस मामले पर विचार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी सिर्फ देखने या डाउनलोड करने से अपराध नहीं बनता जब तक कि इसे प्रसारित करने का इरादा न हो।
‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द बदलने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने संसद को सुझाव दिया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह “चाइल्ड सेक्शुअल एक्सप्लॉइटेटिव एंड एब्यूसिव मटेरियल” शब्द का इस्तेमाल किया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस बदलाव के लिए अध्यादेश लाने की अपील की है और सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” शब्द का इस्तेमाल न करें।
Supreme Court says that mere storage of child pornographic material is an offence under the Protection of Children from Sexual Offences Act (POCSO Act).
Supreme Court suggests Parliament to bring a law amending the POCSO Act to replace the term "child pornography" with "Child… pic.twitter.com/mNwDXX88fb
— ANI (@ANI) September 23, 2024
इस फैसले को यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून को और भी सख्त बनाता है।