पायलट बनने का सपना कैसे हुआ सच , पढ़े सुधांशु शुक्ला की प्रेरणादायक कहानी
वंशिका
लखनऊ, उत्तर प्रदेश में 10 अक्टूबर 1985 को जन्मे शुभांशु शुक्ला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सिटी मोंटेसरी स्कूल, अलीगंज से प्राप्त की। 1999 के करगिल युद्ध से प्रेरित होकर उन्होंने भारतीय वायुसेना में शामिल होने का निर्णय लिया। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और भारतीय वायुसेना अकादमी से प्रशिक्षण लिया। इसके बाद, जून 2006 में उन्हें भारतीय वायुसेना में फ्लाइंग ऑफिसर के रूप में कमीशन प्राप्त हुआ।
शुभांशु शुक्ला एक अनुभवी टेस्ट पायलट हैं, जिन्होंने लगभग 2,000 घंटे से अधिक समय तक विभिन्न विमानों में उड़ान भरी है, जिनमें Su-30 MKI, MiG-21, MiG-29, Jaguar, Hawk, Dornier 228 और An-32 शामिल हैं। उनकी इस विशेषज्ञता ने उन्हें भारतीय वायुसेना में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
2019 में, भारतीय वायुसेना के इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (IAM) द्वारा आयोजित अंतरिक्ष यात्री चयन प्रक्रिया में शुभांशु शुक्ला का चयन हुआ। 2020 में, उन्होंने रूस के यूरी गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में बुनियादी प्रशिक्षण लिया और 2021 में प्रशिक्षण पूरा किया। इसके बाद, उन्होंने बेंगलुरु स्थित ISRO के केंद्र में भी प्रशिक्षण लिया और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की।
शुभांशु शुक्ला को Axiom Mission 4 के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए मिशन पायलट के रूप में चुना गया है। यह मिशन 10 जून 2025 को लॉन्च होने जा रहा है, और यदि सफल होता है, तो वे राकेश शर्मा के बाद ISS पर जाने वाले दूसरे भारतीय बनेंगे। इस मिशन में, वे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सात सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोगों को अंजाम देंगे, जिनमें मांसपेशियों के ऊतक पुनर्जनन, मूंग दाल और अंकुरित बीजों की वृद्धि, सूक्ष्म शैवाल के अंतरिक्ष सुपरफूड के रूप में संभावनाएं, और टार्डिग्रेड्स की जीवित रहने की तंत्र जैसी अध्ययन शामिल हैं।
यह मिशन भारत और ISRO के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि यह NASA और ISRO के बीच सहयोग को मजबूत करता है और भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण में बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। शुभांशु शुक्ला का यह कदम न केवल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।
शुभांशु शुक्ला की पत्नी डॉ. कमला शुक्ला हैं, जो एक डेंटिस्ट हैं और उनकी स्कूल की सहपाठी भी रही हैं। दंपत्ति का एक बेटा भी है। उनका परिवार उनके लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनके इस ऐतिहासिक मिशन में उनका समर्थन महत्वपूर्ण रहा है।
शुभांशु शुक्ला की यात्रा हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ केवल अस्थायी होती हैं, और यदि इरादा मजबूत हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है। उनका यह कदम न केवल भारतीयों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।