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सोनिया गांधी ने पीएम मोदी पर बोला हमला, कहा- आम सहमति का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन टकराव…

नई दिल्ली। कांग्रेस की दिग्गज नेता सोनिया गांधी ने 18वीं लोकसभा का पहला सत्र शुरू होने के करीब एक हफ्ते बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मुंह जुबानी हमला बोला है. उन्होंने अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ में अपना आर्टिकल लिखकर मोदी मोदी पर सवाल उठाए. कांग्रेस नेता ने लिखा, कि मोदी जी तो ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे की कुछ बदला ही न हो. वह आम सहमति का उपदेश देते हैं, लेकिन टकराव को महत्व देना जारी रखते हैं.

सोनिया गांधी ने आर्टिकल में लिखा, दुख की बात है कि 18वीं लोकसभा के कुछ दिन पहले उत्साहवर्धक नहीं रहे. सदन में सौहार्द की तो बहुत दूर की बात है, लेकिन ऐसी कोई आशा नहीं दिखी कि आपसी सम्मान और सहमति की एक नई भावना को बढ़ावा दिया जाएगा.

जनता के मुद्दों को सुना जाए और चर्चा भी हो
उन्होंने आगे लिखा है कि, ‘इंडिया ब्लॉक’ में शामिल सभी पार्टियों ने ये साफ किया है कि वे टकराव का रवैया नहीं अपनाना चाहतीं. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में सहयोग की पेशकश की है. विपक्षी नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे संसद में सार्थक कामकाज और इसकी कार्यवाही के संचालन में निष्पक्षता चाहते हैं. मुझे उम्मीद है कि मोदी जी और उनकी सरकार की प्रतिक्रिया सकारात्मक होगी. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन लाखों लोगों की आवाज सुनी जाए जिन्होंने हमें अपना प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजा है. हम जनता के मुद्दों को उठाएं और उस पर चर्चा करें.

सोनिया गांधी बोलीं- पीएम मोदी नीट पेपर लीक पर चुप क्यों?
कांग्रेस नेता ने लिखा, वैसे तो प्रधानमंत्री परीक्षा पर चर्चा करते हैं, लेकिन NEET पेपर लीक पर चुप बैठे हैं. इन सब से देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और उन्हें डराने के मामले अचानक तेज हो रहे हैं. जिन-जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार है वहां पर सिर्फ आरोप लगने पर ही अल्पसंख्यकों के घरों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया जाता है. प्रधानमंत्री ने चुनाव के दौरान अपने पद की मर्यादा का ख्याल न रखते हुए झूठ बोला और सांप्रदायिक बातें कहीं.

इमरजेंसी पर कांग्रेस सांसद ने किया सवाल
सोनिया गांधी ने आपातकाल (इमरजेंसी) का जिक्र करते हुए लिखा, कि सन् 1977 में देश के लोगों ने इमरजेंसी लगाई जाने पर अपना फैसला सुनाया था. उसने तत्कालीन सरकार को स्वीकार कर दिया था. 1977 के फैसले को हमने बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार किया इसलिए हम 1980 में दोबारा उस बहुमत से वापस आए जिसे मोदी कभी नहीं पा सके.

मणिपुर को लेकर भी केंद्र सरकार को घेरा
इतना ही नहीं कांग्रेस नेता ने अपने लेख में मणिपुर हिंसा का भी जिक्र किया. उन्होंने लिखा- फरवरी, 2022 में बीजेपी और उसके सहयोगियों को मणिपुर विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत मिला. लेकिन फिर भी 15 महीनों के अंदर मणिपुर जलने लगा या फिर ऐसा कहे कि उसे जलने दिया गया. न जाने कितने लोग मारे गए और हजारों विस्थापित हुए. इस सबसे संवेदनशील राज्य में सामाजिक सद्भाव बिगड़ गया है. लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री ने न तो राज्य का दौरा किया और न ही उसके राजनीतिक नेताओं से मिलने का समय निकाल पाए.

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