-ललित गर्ग
सड़क हादसों पर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की डरावनी, चिन्ताजनक एवं भयावह रिपोर्ट आई है। इसके मुताबिक, पिछले साल 4.61 लाख सड़क हादसे हुए। इन दुर्घटनाओं में 1.68 लाख लोगों ने जान गंवाई। इन आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि तकरीबन हर एक घंटे में 53 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। हर घंटे इनमें 19 लोगों की मौत हुई। हादसों एवं लापरवाही की खूनी होती सड़कें चिन्ता का बड़ा सबब है। सड़कों की ‘दुर्घटनाओं’ के कुछ दृश्य आंखों के सामने आ जाते हैं, जो भयावह होते हैं, त्रासद होते हैं, डरावने होते हैं। सच यह है कि बेलगाम वाहनों एवं यातायात कानूनों एवं नियमों की अवहेलना की वजह से सड़कें अब पूरी तरह असुरक्षित हो चुकी हैं। सड़क पर तेज गति से चलते वाहन एक तरह से हत्या के हथियार होते जा रहे हैं। उक्त रपट यह भी बताती है कि सड़क हादसों की संख्या में 11.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई और उनसे होने वाली मृत्यु की दर 9.4 प्रतिशत बढ़ी। इसी तरह सड़क हादसों में घायल होने वालों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। एक्सप्रेसवे हाईवे और राजमार्गों पर ओवर स्पीडिंग जानलेवा दुर्घटनाओं को निमंत्रण देने का ही काम करती है, लेकिन न तो वाहन चालक अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार हैं और न ही सरकारें एवं यातायात पुलिस। बीते वर्ष सड़क हादसों में 66 हजार से अधिक लोगों ने इसलिए जान गंवाई, क्योंकि उन्होंने सीट बेल्ट नहीं पहनी थी या फिर हेलमेट नहीं लगाया था।
यह विडम्बनापूर्ण है कि हर रोज ऐसी दुर्घटनाओं और उनके भयावह नतीजों की खबरें आम होने के बावजूद बाकी वाहनों के मालिक या चालक कोई सबक नहीं लेते। सड़क पर दौड़ती गाड़ी मामूली गलती से भी न केवल दूसरों की जान ले सकती है, बल्कि खुद चालक और उसमें बैठे लोगों की जिंदगी भी खत्म हो सकती है। पर लगता है कि सड़कों पर बेलगाम गाड़ी चलाना कुछ लोगों के लिए मौज-मस्ती एवं शौक का मामला होता है लेकिन यह कैसी मौज-मस्ती है जो कई जिन्दगियां तबाह कर देती है। ऐसी दुर्घटनाओं को लेकर आम आदमी में संवेदनहीनता की काली छाया का पसरना त्रासद है और इससे भी बड़ी त्रासदी सरकार की आंखों पर काली पट्टी का बंधना है। हर स्थिति में मनुष्य जीवन ही दांव पर लग रहा है। इन बढ़ती दुर्घटनाओं की नृशंस चुनौतियों का क्या अंत है? बहुत कठिन है दुर्घटनाओं की उफनती नदी में जीवनरूपी नौका को सही दिशा में ले चलना और मुकाम तक पहुंचाना, यह चुनौती सरकार के सम्मुख तो है ही, आम जनता भी इससे बच नहीं सकती। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 2024 तक देश में दुर्घटनाओं और उनसे होने वाली मौत की संख्या को आधा करने का लक्ष्य रखा है, जो एक उम्मीद जगाता है एवं रोशनी बन रहा है।
दुुनिया में सर्वाधिक तेजी से उन्नत सड़कों का जाल बिछाने में भारत अग्रणी है। लेकिन सुविधाजनक एवं उन्नत होती सड़कों पर मौत की काली छाया का मंडराना सड़क विकास पर एक बदनुमा दाग है। यह दाग सरकारी रिपोर्ट में ही सामने आया है, जिसके अनुसार देश में 2023 में कुल 4,91,312 सड़क हादसे हुए, जिनमें से 1,52,997 यानी 32.9 प्रतिशत हादसे एक्सप्रेसवे एवं राष्टीय राजमार्गों (एनएच) पर हुए। वहीं 1,36,682 यानी 23.1 प्रतिशत हादसे राज्य राजमार्गों जबकि 2,05,633 यानी 43.9 प्रतिशत हादसे अन्य सड़कों पर हुए। रिपोर्ट कहती है कि सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोगों में एक बड़ी संख्या सुरक्षात्मक साधनों का इस्तेमाल न करने वालों की रही। सीट बेल्ट न पहनने की वजह से 16,715 लोगों की इन हादसों में मौत हो गई जिनमें से 8,384 लोग ड्राइवर थे जबकि बाकी 8,331 लोग वाहन में बैठे यात्री थे। इसके अलावा 50,029 दोपहिया सवार भी हेलमेट न पहनने की वजह से इन हादसों में अपनी जान गंवा बैठे। लगातार चौथे साल घातक सड़क दुर्घटना का सबसे अधिक युवा शिकार हुए। राज्यों में तमिलनाडु में 2022 में राष्टीय राजमार्गों पर सबसे अधिक 64,105 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जबकि सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वालों की संख्या उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 22,595 रही।
सड़क दुर्घटनाओं का लगातार बढ़ना अनेक सवाल खड़े करता है। तभी सुप्रीम कोर्ट भी तल्ख टिप्पणी कर चुका है कि ड्राइविंग लाइसेंस किसी को मार डालने के लिए नहीं दिए जाते। हादसों से संबंधित कानूनी प्रावधान अभी इस कदर कमजोर हैं कि किसी की लापरवाही की वजह से दो-चार या ज्यादा लोगों की जान चली जाती है और आरोपी को कई बार थाने से ही छोड़ दिया जाता है। सड़क दुर्घटनाओं ने कहर बरपा रखा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2009 में सड़क सुरक्षा पर अपनी पहली वैश्विक स्थिति रिपोर्ट में सड़क दुर्घटनाओं की दुनिया भर में ‘सबसे बड़े कातिल’ के रूप में पहचान की थी।