नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मंगलवार को नई दिल्ली में 8वें भारत जल सप्ताह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने जल संकट से जूझ रहे लोगों की संख्या को कम करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह लक्ष्य पूरी मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत जल और स्वच्छता प्रबंधन में सुधार के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि प्राचीन काल से ही भारत में जल उपलब्धता सुनिश्चित करना एक प्राथमिकता रही है। लद्दाख से केरल तक, देशभर में जल संरक्षण और प्रबंधन की प्रभावी प्रणालियाँ थीं, जो ब्रिटिश शासन के दौरान लुप्त हो गईं। उन्होंने कहा कि हमारी पारंपरिक जल व्यवस्थाएं प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित थीं और अब पूरी दुनिया इस पर पुनर्विचार कर रही है।
कुएं, तालाब और अन्य जलस्रोतों को जल बैंक की तरह मानते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे हम बैंक में पैसे जमा करते हैं, वैसे ही जल भंडारण करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वर्षा जल का कुशल भंडारण करने वाले गांव जल संकट से सुरक्षित रहते हैं, और इस दिशा में राजस्थान और गुजरात के ग्रामीण इलाकों के सफल उदाहरण प्रस्तुत किए।
राष्ट्रपति ने यह भी बताया कि पृथ्वी पर कुल जल का मात्र 2.5 प्रतिशत ही मीठा जल है, जिसमें से केवल एक प्रतिशत ही मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है। भारत के पास विश्व के जल संसाधनों का चार प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें से 80 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में उपयोग होता है। उन्होंने जल के कुशल उपयोग पर जोर देते हुए कहा कि सभी क्षेत्रों के लिए जल की उपलब्धता आवश्यक है।
उन्होंने वर्ष 2021 में शुरू किए गए ‘कैच द रेन’ अभियान की सराहना करते हुए कहा कि इस अभियान का उद्देश्य जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना है। बच्चों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि वे जल प्रबंधन में अपने परिवार और समुदाय को जागरूक कर सकते हैं।
अंत में, राष्ट्रपति ने ‘भारत जल सप्ताह 2024’ के लक्ष्य समावेशी जल विकास और प्रबंधन की सराहना की और इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय के प्रयासों की प्रशंसा की।