नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें प्रचार के दौरान कथित तौर पर सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी भाषण देने को लेकर PM मोदी के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया गया था. याचिका में इन कथित भाषणों को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बताया गया था. न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है. उन्होंने कहा कि आयोग कानून के अनुसार याचिकाकर्ता की शिकायत पर स्वतंत्र रूप से विचार कर सकता है.
अदालत ने क्या-क्या कहा?
अदालत ने प्रधानमंत्री के धर्म और देवी-देवताओं के नाम पर कथित रूप से वोट मांगने वाले एक भाषण से संबंधित याचिका पर दिए गए अपने पहले के आदेश का भी हवाला दिया और कहा कि कोई भी धारणा बनाना अनुचित है. निर्वाचन आयोग के वकील ने कहा कि आयोग पहले ही सभी राजनीतिक दलों को एक विस्तृत परामर्श जारी कर चुका है. आयोग के मुताबिक, जरूरत पड़ने पर उचित कार्रवाई की जाएगी.
अलग-अलग मानक नहीं
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि निर्वाचन आयोग के पास अलग-अलग राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए अलग-अलग मानक नहीं हो सकते. याचिका में आरोप लगाया गया कि निर्वाचन आयोग से की गई शिकायतों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अन्य नेताओं पर उनके कथित नफरत भरे भाषणों के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
पुराना भी है मामला
इससे पहले 29 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट की इसी पीठ ने देवताओं और पूजा स्थलों के नाम पर कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए वोट मांगने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 6 साल के लिए अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी. याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि चुनाव आयोग याचिका पर फैसला करेगा. न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने पहले की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिका ‘पूरी तरह से गलत’ थी, क्योंकि याचिकाकर्ता ने मान लिया है कि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है.
(इनपुट: एजेंसी)