जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा पूर्वोत्तर भारत

मोनिका 

हर बदलाव के पीछे कोई न कोई असर जरूर छिपा होता है — चाहे वह बदलाव कितना ही छोटा क्यों न हो। कई विचारकों और वैज्ञानिकों ने यह बात पहले ही कही है कि हमारे हर कर्म का कोई-न-कोई परिणाम ज़रूर होता है। न्यूटन का तीसरा नियम भी यही बताता है: हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। और जब हम इतने छोटे बदलावों के इतने बड़े परिणामों की बात कर रहे हैं, तो सोचिए उन बदलावों का क्या असर होगा जो मानव जाति रोज़ बड़े पैमाने पर कर रही है — जैसे तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, पेड़ों की कटाई, बेतरतीब शहरीकरण, और बढ़ता कचरा। ये सभी बदलाव जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को और तेज कर रहे हैं।

जब मानव गतिविधियों का प्रभाव इतना गहरा है, तो जलवायु में बड़े पैमाने पर बदलाव कोई चौंकाने वाली बात नहीं होनी चाहिए।

पूर्वोत्तर भारत: जलवायु परिवर्तन की सीधी मार

हाल के हफ्तों में पूर्वोत्तर भारत, विशेष रूप से असम, जलवायु परिवर्तन की इस मार का बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है। जैसे ही मानसून की शुरुआत हुई, इस क्षेत्र में भारी बारिश और बाढ़ ने तबाही मचा दी। असम की भौगोलिक स्थिति — जहां ऊँचाई से नीचे की ओर बहने वाली नदियाँ और विस्तृत मैदानी क्षेत्र हैं — प्राकृतिक आपदाओं को और अधिक गंभीर बना देती है।

ब्रह्मपुत्र नदी, जो बार-बार अपना रास्ता बदलती है, इस क्षेत्र में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण बनती जा रही है। अब जलवायु परिवर्तन के कारण भारी और अनियमित बारिश इस समस्या को और भी जटिल बना रही है।

तबाही के आंकड़े और मानवीय संकट

इस बार की बाढ़ में अब तक 6.8 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। असम के 66 राजस्व सर्किलों और 21 जिलों के लगभग 1500 गांव जलमग्न हो चुके हैं। अब तक 52 लोगों की जान जा चुकी है।

ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों का जलस्तर चेतावनी के स्तर को पार कर चुका है, जिससे स्थानीय लोगों के लिए हालात बेहद गंभीर बन गए हैं। हजारों लोगों को अपने घर छोड़कर राहत शिविरों में जाना पड़ा है। कई इलाकों में सेना और एनडीआरएफ की टीमें राहत और बचाव कार्यों में लगी हुई हैं। अरुणाचल प्रदेश में भूस्खलन की घटनाएं भी सामने आई हैं।

प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है

जब पारिस्थितिक तंत्र (ecosystems) के चारों ओर का वातावरण तेजी से बदलता है, तो उसका सीधा असर वहां रहने वाले जीवों और मनुष्यों पर पड़ता है। असम और पूर्वोत्तर भारत में इस बार की बारिश और बाढ़ ने हमें फिर से यह याद दिला दिया है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।

अब समय आ गया है कि हम अपने पर्यावरण के प्रति किए गए कर्मों पर विचार करें और उनके नतीजों को गंभीरता से लें। यदि अब भी हम नहीं जागे, तो आने वाले वर्षों में असम जैसी आपदाएं और भी भयावह रूप में सामने आएंगी।

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