अजय प्रताप तिवारी
भारत में हीटवेव और प्रचंड गर्मी से थोड़ी राहत मिली नहीं कि वायरसों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। कई राज्य वायरस की गिरफ्त में हैं। महाराष्ट्र में जीका वायरस, केरल में दिमाग को खाने वाले अमीबा बुखार, कर्नाटक में डेंगू आफत बन चुका है।
बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से दुनिया में समय-समय पर विभिन्न प्रकार के वायरस पनप रहे हैं, जो मनुष्यों के जीवन के लिए घातक सिद्ध हुए हैं। ये वायरस इतने खतरनाक होते हैं कि पल भर में मनुष्यों के जीवन को लील देते हैं।
जीका वायरस का सबसे ज्यादा खतरा गर्भवती महिलाओं को है, क्योंकि इससे नवजात शिशुओं में माइक्रोसेफैली होने का खतरा होता है, जिससे शिशुओं के मस्तिष्क का विकास नहीं हो पाता। जीका वायरस का वाहक एडिज मच्छर है। यह वायरस इंसानों से पहले रीसस बंदरों में देखा गया था जो अफ्रीकी देश युगांडा के जीका जगलों में पाया गया था। इसका प्रकोप इंसानों पर 2007 से तेज हुआ है। जीका वायरस ने 2015 में पूरे विश्व में तबाही मचाई जिसमें लाखों लोगों की जान चली गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 2016 में वैश्विक आपदा घोषित किया। भारत में पहली बार जीका वायरस का मामला 2016-17 में गुजरात में प्रकाश में आया था। मानव के मस्तिष्क के तंतुओं को नष्ट कर देने वाला अमीबा बुखार मानव जीवन के लिए बड़ी चुनौती है। इस बुखार का पहला मामला 2016 में केरल में सामने आया था। तब से अब तक यहां आठ मरीज मिले हैं, और सभी की मौत हुई। केंद्र सरकार के एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार अब तक केरल से हरियाणा और चंडीगढ़ तक 22 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से छह मौत 2021 के बाद दर्ज की गई। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान के अनुसार, 2019 तक देश में इस बीमारी के 17 मामले सामने आए लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद तमाम तरह के नये संक्रमणों में उछाल देखने को मिला है।
पिछले कुछ वर्षो में मंकीपॉक्स, इबोला, निपाह वायरस, कोविड-19, जीका वायरस लगातार पैर पसार रहे हैं। ये संक्रमण इतनी तेजी से फैलते हैं कि देखते ही देखते पूरे शहर को संक्रमित कर देते हैं। जीका वायरस एडीज मच्छर से फैलने वाला घातक वायरस है। एडिज एजिप्टी डेंगू और चिकनगुनिया का वाहक भी है। जीका वायरस यौन संबंध से भी फैलता है, मां से भ्रूण में प्रवेश कर जाता है जो पेट में पल रहे बच्चे के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर देता है। जीका वायरस भविष्य में कोविड-19 से भी भयानक रूप ले सकता है। यह मनुष्यों के लिए ही घातक नहीं है, बल्कि भावी नस्ल को भी मानसिक रूप से कमजोर करेगा। विभिन्न प्रकार के संक्रमण इंसानों को आर्थिक एवं सामाजिक रूप से कमजोर बनाते हैं।
देश में तेजी से फैलता संक्रमण न केवल स्वास्थ्य चिंता का विषय है, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी पटरी से उतार देता है। पर्यटन एवं उद्योग के साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित करता है, आयात-निर्यात पर भी गहरा प्रभाव डालता है। संक्रमण के चलते लंबे समय तक स्वास्थ्य समस्याएं बनी रहने से कार्यबल में गिरावट आती है जिसका प्रभाव उत्पादन क्षमता पर पड़ता है, काम का दबाव बढ़ता है। सामाजिक दूरियां बढ़ती हैं, जिसका असर कोविड-19 के समय भी देखने को मिला था। संक्रमण समय से नहीं रोका नहीं गया तो मानव सभ्यता को नष्ट कर डालेगा। जलवायु परिवर्तन और प्रकृति में मानवीय हस्तक्षेप से संक्रमण का प्रभाव पशु-पक्षियों में भी देखने को मिल रहा है।
भारत में इस वक्त में बारिश का मौसम है। इसलिए सबसे ज्यादा खतरे की बात है। जगह-जगह जल-भराव की समस्या से एडिज मच्छर पनपते हैं। गांवों के तालाबों, नालियों और गड्ढों में तब्दील जमीनों में साफ पानी का भराव होता है जिससे एडिज मच्छर पनपने की गुंजाइश बनती है, इससे गांवों में जीका वायरस फैलने का खतरा है। भारत में जीका वायरस या नये वायरसों के निदान की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है, यदि है भी तो बहुत सीमित। बढ़ता संक्रमण रोकने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग और प्रभावी नीति-निर्माण आवश्यक है।
जीका वायरस के निदान हेतु बाहर से आने वाले यात्रियों की गहन जांच की जाए और उनका डाटा तैयार किया जाना चाहिए ताकि शहर या गांव में किसी भी प्रकार के वायरस का पता लगने पर उन व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके जो बाहर से आए हैं। राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर संक्रमण निवारण केंद्र बनाने की जरूरत है। त्वरित जांच टीम बनाना जरूरी है। जागरूकता अभियान और शिक्षा के माध्यम से शहरों और गांवों में लोगों को इसके बारे में जानकारी देनी चाहिए। गांव, कस्बों में स्वास्थ्य मित्र नियुक्त करके महीने में स्वास्थ्य शिविर आयोजित करते रहना चाहिए, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मच्छरदानी वितरण और दवा का छिडक़ाव समय-समय पर किया जाना चाहिए ताकि मच्छरों का प्रकोप बढ़ न पाए। मच्छरों का प्रकोप कम करने के लिए जीएम मच्छरों को तैयार करना चाहिए। इंसानों के साथ ही पशु-पक्षियों में पनप रहे संक्रमण को रोकने का भी उपाय करना चाहिए।