अजय दीक्षित
पिछले दिनों राहुल गांधी तीन-चार दिन के लिए अमरीका गये थे । वहां उन्होंने अपने अनेक इंटरव्यू में मोदी की जमकर आलोचना की । इस पर भाजपा के सारे प्रवक्ता, वर्तमान और पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा समर्थक टी.वी. चैनल राहुल गांधी की जमकर आलोचना कर रहे हैं ।
असल में आज इण्टरनेट, व्हाट्सएप और अनेक अन्य प्रकार की मोबाइल और कम्प्यूटर के द्वारा एक स्थान के समान्तर दुनिया के सारे हिस्सों में तत्काल पहुंच जाते हैं हम उसे लाइव ही कहेंगे । राहुल गांधी इस बार अधिकृत रूप से विपक्ष के लीडर ऑफ अपोजिशन हैं । यूं बहुतों का मानना है कि राहुल गांधी कोई ज्यादा बड़े चिंतक नहीं हैं ।
उन्होंने कानून (लॉ), राजनीतिक या अर्थशास्त्र की विधिवत शिक्षा नहीं ली है । ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में कुछ ऑडिट कोर्स होते हैं यानि आप उन भाषणों को सुनते हैं और सर्टिफिकेट मिल जाता है । कोई परीक्षा नहीं होती । इन कोर्सों की कोई कीमत नहीं है । हम नहीं जानते कि राहुल गांधी कोई ओरिजिनल पुस्तकें पढ़ते होंगे? यूं उनकी इंग्लिश बहुत अच्छी है । अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हैं और पढ़ भी सकते होंगे । कुछ लिखते भी हैं, ऐसा देखने में नहीं आया है । उनकी कोई चिन्तनशील किताब नहीं आई है । नीतिपरक कोई लेख उनके भारत के या विदेशों के अखबारों में छपे हैं, ऐसा देखने को नहीं मिला है ।
अब जब ट्रांसमिशन इतना आसान और तत्काल हो गया है तो फिर राहुल गांधी देश में क्या कहते हैं और विदेश में इससे क्या फर्क पड़ता है? परन्तु भाजपा के प्रवक्ता और टी.वी. चैनल विपक्ष की आलोचना के अलावा और कर भी क्या सकते हैं? टी.वी. चैनलों पर बहस बेकार की बात है । परन्तु चौबीस घण्टे का टी.वी. और कर भी क्या सकता है । अत: टी.वी. चैनलों के एंकर सत्ता पक्ष की कृपा दृष्टि के लिए सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता की भांति बोलते हैं जबकि एंकर को निष्पक्ष रहना चाहिए । उसको प्रोग्राम को मौटोरेट करना है । अपना पक्ष नहीं । पर कौन किसे समझाये ? विपक्ष का कहना है कि मोदी जी ने भी विदेशी धरती पर पिछली पूर्व सरकारों की जमकर आलोचना करते हैं । राज्यसभा में उनका वक्तव्य कि बरसाती पहनकर नहाने की कला कोई डॉक्टर साहब से पूछे । यह मनमोहन सिंह पर व्यंग था । यह वक्तव्य अमरीका और इंग्लैण्ड के कई प्रतिष्ठित अखबारों में छपा था ।
इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने नेहरू की जमकर आलोचना की थी । अब वे 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाते हैं और इन्दिरा गांधी की आलोचना करते हैं । संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि इमरजेंसी लगाना और ज्यादती करना गलत था, परन्तु यह इमरजेंसी भारत के संविधान के तहत ही लगाई गई थी जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति ने अप्रूव किया था ! विपक्ष का कहना है कि मोदी जिस संविधान को माथे से लगते हैं, उसमें इतने संशोधन क्यों हुये ? मोदी के कार्यकाल में भी संविधान में संशोधन हुए हैं ! भारत की जनता अनपढ़ हो सकती है, वह आज की राजनीति के दांव पेंच नहीं जानती, पर वोट समझ बूझकर देती है । सभी सारी एजेन्सियों की रिपोर्ट के बावजूद इन्दिरा गांधी उत्तर प्रदेश में 85 सीटों पर हार गई और अपनी हार भी नहीं बचा पाई ।
असल में पक्ष और विपक्ष का लक्ष्य क्या है? देश की तरक्की? तो हो सकता है सत्ता पक्ष के लिए इसका रास्ता कोई और हो और विपक्ष के लिए कोई और । परन्तु दोनों का लक्ष्य तो एक ही है । इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि मोदी के ग्यारह वर्षों में भारत ने सभी क्षेत्रों में अभूतपूर्व तरक्की की है । यह भी सत्य है कि उतना विकास अन्य प्रधानमंत्री के कार्यकाल में नहीं हुआ । परन्तु तब की परिस्थिति क्या थी, यह भी देखना चाहिए ।
असल में चाहे देश हो या विदेश परस्पर आलोचना भी नीति परक होना चाहिए । ठोस नीति पर आधारित शायद इसके लिए पक्ष और विपक्ष दोनों जिम्मेदार हैं । हमें आशा है मोदी इस और अपनी उदारतावश कोई रास्ता निकालेंगे ताकि परस्पर आलोचना में संसद का समय जाया न हो । आज आम आदमी बेरोजग़ारी, मंहगाई, बढ़ते अपराध और इंटरनेट क्राइम से परेशान है । पक्ष और विपक्ष दोनों को आम जनता की फिक्र होनी चाहिए । यही कल्याण का मार्ग है ।