श्रुति व्यास
यूक्रेन हमलावर है। और वो रक्षात्मक कतई नहीं है। वो रूस की हर ईंट का जवाब पत्थर से दे रहा है। अगस्त में रूसी इलाके में काफी अन्दर तक घुसपैठ करने में यूक्रेन की आश्चर्यजनक सफलता से उसकी जनता और यूक्रेन के मित्र देशों, दोनों का मनोबल काफी बढ़ा है।
मगर अब बुरी खबर।
यूक्रेन के लुवियो पर हुए एक मिसाइल हमले में कम से सात लोग मारे गए और 53 घायल हुए। इसके पिछले दिन पोल्टावा के एक सैन्य प्रशिक्षण केन्द्र व अस्पताल पर हुए हमले में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। सप्ताहांत पर खार्कीव में एक खेल मैदान को बम का निशाना बनाया गया। इसमें एक चौदह वर्षीय लडक़ी समेत कम से कम सात लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इस बीच पूर्वी यूक्रेन में रूसी सुरक्षाबलों की स्थिति मजबूत हुई है, जहां दसियों हजार यूक्रेनी पलायन की तैयारी कर रहे हैं। यदि रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पोकरोस्क यूक्रेन के हाथ से निकल जाता है, तो यह उसके लिए एक बड़ा धक्का होगा।
इन हमलों के बीच राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की ने जनता की नाराजगी को महसूस करते हुए युद्ध शुरू होने के बाद से सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण प्रशासनिक फेरबदल किया है। जेलेंस्की का पांच वर्ष का कार्यकाल 20 मई को समाप्त हो गया है लेकिन चुनाव करवाने के बजाए वे पद पर जमे हुए हैं। यूक्रेन में फरवरी 2022 में रूसी आक्रमण के बाद लागू किया गया मार्शल लॉ अभी भी जारी है, जिसके अंतर्गत चुनाव नहीं करवाए जा सकते। हालांकि युद्ध के शुरूआती दौर में जेलेंस्की के प्रयासों और उनके नेतृत्व की प्रशंसा होती थी, और देश की जनता उनके नेतृत्व में एकजुट थी, लेकिन बाद में उनकी लोकप्रियता और उनके प्रति समर्थन घटता गया। कुछ यूक्रेनियाईयों का मानना है कि यदि देश का नेतृत्व किसी अन्य नेता के हाथ में होता तो युद्ध बेहतर तरीके से लड़ा जा सकता था और किसी तरह के शांति समझौते का मार्ग प्रशस्त हो सकता था।
उनकी मंत्रिपरिषद में भी उनके प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान थोक में इस्तीफे हुए हैं, जिससे बगावत की बू आ रही है। यही वजह है कि जेलेंस्की फेरबदल कर रहे हैं, जिसका लंबे समय से इंतजार था। कई अत्यंत प्रभावशाली और महत्वपूर्ण व्यक्ति बर्खास्त किए जाने वालों की लिस्ट में शुमार हैं। दो उपप्रधानमंत्री और कानून मंत्री तो इनमें हैं ही, मगर हटाए जाने वालों में सबसे जाने-माने व्यक्ति हैं दिमित्रो कुलेबा, जो लंबे समय से विदेशमंत्री हैं। जब उन्होंने फरवरी में अत्यंत लोकप्रिय सेनाध्यक्ष वलेरी ज़ालुज़्नी को बर्खास्त किया था, तो लोगों को काफी आश्चर्य हुआ था, लेकिन विदेश मंत्री और ऊर्जा ग्रिड के प्रमुख व्लादिमिर जेलुनन्यही को हटाए जाने और बोर्ड के दो विदेशी सदस्यों द्वारा राजनैतिक दबाव की शिकायत किया जाना वाकई उनके लिए चिंता का सबब है।
इससे यह संकेत भी मिलता है कि नेताओं पर जबरदस्त दबाव है और वे केवल भरोसेमंद सहायकों एवं सहयोगियों पर ही निर्भर रहना चाहते हैं। यूक्रेन की जनता यह चाहती है कि जिस समय यूक्रेन अपने अस्तित्व को बचाए रखने ली लड़ाई लड़ रहा है, तब देश में उपलब्ध प्रतिभाओं का पूरी तरह से इस्तेमाल होना चाहिए। इस फेरबदल को उतना नाटकीय नहीं माना जा रहा है, जितना अनुमानित था, लेकिन इससे जेलेंस्की के निकटस्थ लोगों, विशेषकर उनके चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमक की पकड़ मजबूत हुई है।
फेरबदल का कारण साफ़ करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि देश को ‘नई ऊर्जा’ की आवश्यकता थी। समय बीतने के साथ इजरालियों की तरह यूक्रेनी भी युद्ध से थक चुके हैं, और रायशुमारियों के अनुसार सरकार की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है।
अतीत में जेलेंस्की ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व व प्रसिद्धी का लाभ उठाते हुए कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है। उनका राष्ट्रपति बनना भी एक चमत्कार ही था, जैसा कि नई बीबीसी डाक्यूमेंट्री ‘द जेलेंस्की स्टोरी’ में बताया गया है। लेकिन रूसी आक्रमण का उन्होंने जिस तरह से सामना किया है, उसने उनकी छवि को भारी नुकसान पहुँचा है। राष्ट्रीय संकटों के समय नेताओं को कसौटी पर कसा जाता है। लेकिन संभवत: कोई अन्य व्यक्ति देश का आंतरिक व बाह्य समर्थन हासिल करने में उस हद तक सफल नहीं हो पाता, जितने कि जेलेंस्की रहे।
इस महीने वे जो बाइडन से मिलने वाशिंगटन जाएंगे और तब उनकी करिश्माई व्यक्तित्व और देश पर उनके प्रभाव को एक कड़े परिक्षण से गुज़ारना पड़ेगा। विशेषकर इसलिए क्योंकि नवंबर में होने जा रहे अमरीकी चुनावों का नतीजा अब भी अनिश्चित ही है। आने वाले दिन जेलेंस्की जैसे करिश्माई नेता के लिए चुनौतीपूर्ण होंगे क्योंकि उन्हें राजनीति के मोर्चे पर देश में घटती लोकप्रियता का सामना करना होगा और अपने विदेशी मित्रों और सहयोगियों की उम्मीदों पर भी खरा उतरना होगा।