पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी के पास खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस में पीछे से मालगाड़ी के टक्कर मार देने की घटना वाकई तकलीफदेह है। इस हादसे में रेलवे के अनुसार नौ लोगों की मौत हुई है और कई अन्य घायल हैं। हालांकि अंदाजा है कि जितनी मौतें बताई जा रही हैं, इससे कहीं ज्यादा लोग मारे गए हैं। हादसे में तीन बोगियां बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई। तीन बोगियां पटरी से ही उतर गई और कई हवा में लहरा गई। यह टक्कर बहुत जोरदार थी। कहा जा रहा है कि ऑटोमैटिक सिग्नल खराब होने के कारण कंचनजंगा एक्सप्रेस दो स्टेशनों के बीच रुकी रही।
रेलवे का कहाना है कि मालगाड़ी का चालक तय मानक गति से ज्यादा स्पीड पर ट्रेन चला रहा था। उसने सिग्नल की अनदेखी की, जबकि नियमानुसार उसे खराब सिग्नलों को तेजी से नहीं पार करना था। साथ ही हर खराब सिग्नल पर एक मिनट के लिए ट्रेन को रोका जाना चाहिए और दस किलोमीटर की रफ्तार से ही आगे बढना चाहिए। हालांकि उस चालक की मौके पर ही मौत हो गई। इस पर रेल संगठन द्वारा आपत्ति भी जताई गई कि जांच के बगैर चालक को हादसे का जिम्मेदार ठहराना अनुचित है।
हादसे के बाद रेलवे द्वारा तैयार ट्रेन से जुड़े हादसों को रोकने के लिए कवच सिस्टम की याद आई है, जिससे एक ही ट्रैक पर ट्रेनों की टक्कर से बचा जा सकता है। यह अत्याधुनिक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटक्शन सिस्टम है। ओडिशा के बालासोर में हुए हादसे के बाद इस कवच सिस्टम को लागू करने की बातें खूब की गई थीं। हैरत है, इतना वक्त बीतने के बाद भी उसे केवल साउथ सेंट्रल रेलवे के कुछ रूट में ही लगाया जा सका है। इसे सीधे तौर पर सरकारी तंत्र की लापरवाही ही माना जाएगा।
रेल मंत्रालय के अनुसार इस पर काम चल रहा है, मगर जब हमारे पास इतनी बेहतरीन प्रणाली मौजूद है तो उसे लागू करने में किस स्तर की ढिलाई बरती गई, जानना भी जरूरी है। यदि यह हादसा मानवीय भूल है तो भी जरूरत से ज्यादा या नियमों की अनदेखी करते हुए बढ़ाई गयी रफ्तार के लिए अन्य संबंधित विभाग भी कम जिम्मेदार नहीं हो सकते।
रेल परिवहन टीम वर्क है। इसके लिए दोषारोपण के बजाए जिम्मेदाराना रवैया अपनाया जाना चाहिए। आधुनिक तकनीक और बेहतरीन पण्रालियों के युग में इस तरह की दुर्घटनाओं से रेलवे की साख गिरने बचाने के प्रयास किया जाना जरूरी है। क्योंकि ऐसी घटनाओं से न केवल जनता का विश्वास डगमगाएगा, बल्कि रेलवे की कमाई पर भी असर पड़ेगा।