भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और चौराहे पर खड़ी उसकी विचारधारा…..!

मथुरा। आतंकवादियों द्वारा जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले ने पूरे देश को जहां स्तब्ध कर दिया है वहीं दूसरी तरफ 135 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस अभी भी है यह फैसला नहीं कर पा रही है कि उसे इस नाजुक मौके पर केंद्र की सत्ता के साथ खड़ा होना है या अभी भी उसे विरोध करना है।इसमें शहीद बेकसूर पर्यटकों के अंतिम द्रश्य देखकर पूरा देश रो रहा है. आतंकवादियो और उनके सरपरस्तों को सजा देने के लिए पूरा देश एकजुट दिखाई पड़ रहा है।

भारत सरकार का आक्रोश और गंभीरता उनके एक्शन में दिखाई पड़ रही है. अभी तक तो आतंकवादियों और साजिशकर्ताओं के खिलाफ एक्शन को लेकर राजनीतिक सहमति भी बनती दिख रही है. धर्म के नाम पर बेगुनाहों की हत्या के अधर्म को भी राजनीति अपने धर्म के मुताबिक देख रही है। कांग्रेस ने आतंकवादी घटना पर भारत सरकार के साथ खड़े होने का संदेश देने के साथ ही कार्यसमिति ने पारित प्रस्ताव में खुफिया विफलताओं और सुरक्षा चूक पर सवाल खडे़ करना शुरू कर दिए हैं।

इसमें कहा गया है..“यह अत्यंत चौंकाने वाली बात है कि भारतीय जनता पार्टी इस गंभीर त्रासदी का दुरुपयोग अपने आधिकारिक और परोक्ष सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से और अधिक वेमनस्य, अविश्वास, ध्रुवीकरण और विभाजन फैलाने के लिए कर रही है.जबकि इस समय सबसे अधिक आवश्यकता एकता और एकजुटता की है।’’ कांग्रेस अपने प्रस्ताव में मारे गए हिंदू पर्यटकों के साथ ही उनकी रक्षा करते हुए शहीद एक गैर हिंदू का उल्लेख कर वोट बैंक की राजनीति को पोषित करने का प्रयास किया है. खुशी की बात यह है कि कांग्रेस ने स्पष्टता के साथ यह माना है कि इस कायराना और सुनियोजित आतंकी हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गई. हमारे गणराज्य के मूल्य पर सीधा हमला है. हिंदू नागरिकों को जानबूझकर निशाना बनाना पूरे देश में भावनाएं भड़काने की एक सोची समझी साजिश है।

कांग्रेस प्रस्ताव में अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा और जम्मू कश्मीर के लोगों की आजीविका की रक्षा करने की भी मांग भी उठा रही है.
पहलगाम की आतंकवादी घटना काफी लंबे समय के बाद भारतीय आत्मा पर हमले के रूप में सामने आई है. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत काफी पहले से ग्रस्त रहा है. जम्मू-कश्मीर तो आजादी के बाद से ही आतंकवादी घटनाओं से ग्रसित रहा है. भारत के अनेक हिस्सों में आतंकवादी घटनाएं होती रही हैं।

मुंबई में 26-11 की घटना कांग्रेस की सरकार के समय घटित हुई थी. उस घटना का साजिशकर्ता तह्ब्बुर राणा का प्रत्यर्पण करा भारत लाने में वर्तमान सरकार अब जाकर सफल हुई है. विपक्षी पार्टी के रूप में आतंकवादी घटना के लिए खुफिया विफलता और सुरक्षा चूक पर सवाल उठाना असामान्य बात नहीं कही जाएगी, लेकिन कांग्रेस के लिए यह बात सामान्य भी नहीं मानी जा सकती। कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है, जिसने आतंकवादी घटनाओं में अपने पुरखों को गंवाया है. शहादत दी है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या तो प्रधानमंत्री आवास में ही कर दी गई थी. कांग्रेस अगर खुफिया विफलता और सुरक्षा चूक की बात उठाती है तो उसे इंदिरा गांधी की हत्या के कारणों पर भी चिंतन-मनन जरूर करना चाहिए।

इसी तरह से राजीव गांधी की भी बम विस्फोट में हत्या हुई थी. इसमें भी क्या कांग्रेस खुफिया विफलता और सुरक्षा चूक को बड़ा कारण मानती है. आतंकवादी और अपराधिक घटनाएं एक साजिश के तहत की जाती हैं. दुनिया का कोई भी देश नहीं है जिसमें खुफिया एजेंसी और सुरक्षा व्यवस्था इतनी पुख्ता हो कि उनको रोका जा सके. अमेरिका में 9-11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले को भी खुफिया एजेंसी की विफलता और सुरक्षा चूक के रूप में देखा जा सकता है. अमेरिका तो दुनिया का सबसे ताकतवर देश माना जाता है. इसी प्रकार इजराइल में हमास के आतंकियों ने हमला किया तो क्या उसे साजिश के रूप में देखा जाएगा या यह भी सुरक्षा चूक के रूप में देखा जाए.
राजनीति करने के लिए अवसरों की कमी नहीं है. भारतीय आत्मा की लाश पर राजनीति की मंशा स्वस्थ मस्तिष्क की उपज तो नहीं हो सकती।

भारत पर आतंकवादियों का यह इतना बड़ा हमला है कि, इस पर कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय विपक्ष का स्टैंड एक लाइन के प्रस्ताव में सामने आना चाहिए था कि, आतंकवादियों और साजिशकर्ताओं को सज़ा देने के लिए उसका भारत सरकार को बिना शर्त पूरा समर्थन है।
कांग्रेस जब सरकार से यह मांग करती है कि, जम्मू कश्मीर के लोगों की आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए तो उसे यह भी सुझाव देना चाहिए कि वह किस तरीके से की जा सकती है. जब इस राज्य की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आश्रित है. आतंकवादी हमले के कारण पर्यटन बर्बाद होने की पूरी संभावना है, तो फिर आजीविका की सुरक्षा के लिए सरकार कौन से स्पेसिफिक कदम उठा सकती है।

कांग्रेस कार्य समिति के प्रस्ताव में वही पुरानी राजनीति खेलने का प्रयास किया है, जो वोट बैंक और तुष्टिकरण के नाम अब तक खेलती रही है. सोशल मीडिया पर की जा रही बातों को कार्य समिति के प्रस्ताव में उल्लेखित करके कांग्रेस अपने इरादे ही जाहिर कर रही है.
आतंकवादियों ने अगर धर्म पूछ कर पर्यटकों को गोली मारने का अधर्म किया है तो क्या कांग्रेस पीड़ित लोगों द्वारा बताए गए, आतंकवादियों द्वारा धर्म की पहचान पूछने के तथ्य को साजिश मानती है।

कांग्रेस कार्य समिति के प्रस्ताव ने सर्वदलीय बैठक में उसकी भूमिका भी स्पष्ट कर दी है. आज देश का जो माहौल है उसमें कांग्रेस यह हिम्मत तो नहीं कर सकती कि, सरकार को सीधे कटघरे में खड़ा कर सके लेकिन राजनीति करने का अपना धर्म भी नहीं छोड़ सकती है.
विचारों की अपरिपक्वता, राष्ट्रीय मुद्दों पर भी राजनीति को प्राथमिकता, तुष्टिकरण, ध्रुवीकरण की दुविधाग्रस्तता ने कांग्रेस को घेर रखा है. आतंकवाद की त्रासदी की इस घटना में भी कांग्रेस का यही अंतरविरोध दिखाई पड़ रहा है।

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