नई दिल्ली: पिछले कुछ महीनों में भारत में ड्रग्स तस्करी के रूट में शामिल आसपास के देशों में कई बड़ी हलचलें हुई हैं, जिससे भारत के लिए नई चुनौतियां पैदा हो रही हैं। बांग्लादेश की अस्थिरता खत्म नहीं हो रही है, म्यांमार अफीम की खेती में सबसे आगे हो गया है, और पाकिस्तान व अफगानिस्तान पहले से ही मुश्किल हालात का सामना कर रहे हैं। हाल में आई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट बताती है कि समंदर के रास्ते होने वाली ड्रग्स तस्करी भी बढ़ रही है। ये सभी परिस्थितियां मिलकर भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं, और ड्रग्स नए-पुराने कई रूट्स के जरिए भारत में अपनी पैठ जमा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को इस स्थिति को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है।
सी रूट्स: ईरान, पाकिस्तान
पूर्व डायरेक्टर जनरल, नेशनल एकेडमी ऑफ कस्टम्स, इन डायरेक्ट टैक्स एंड नार्कोटिक्स जी श्रीकुमार मेनन के अनुसार, समंदर में कई रूट्स हैं जिनसे ड्रग्स की तस्करी होती है। एक रूट ईरान से अरब सागर के रास्ते पाकिस्तान होकर लक्षद्वीप तक आता है। इस रूट से ड्रग्स कोमोरोस आइलैंड और ऑस्ट्रेलिया भी भेजा जाता है। जब समुद्र के रास्ते ड्रग्स केरल पहुंचता है, तो वहां से यह कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में पहुंचता है। एक अन्य रूट पाकिस्तान-ईरान से सीधे पोरबंदर, गुजरात का है। वहीं, श्रीलंका से तस्करी होने पर ड्रग्स तमिलनाडु तक पहुंचता है।
लैंड रूट्स: ड्रोन और अंडरग्राउंड टनल्स से सप्लाई
जी श्रीकुमार मेनन के अनुसार, पाकिस्तान से वेस्टर्न बॉर्डर के रास्ते कश्मीर तक ड्रग्स की सप्लाई ड्रोन और अंडरग्राउंड टनल्स के माध्यम से होती है। म्यांमार से असम, मणिपुर तक याबा ड्रग्स आता है, और फिर यह असम से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तक फैलता है। आंध्र प्रदेश से यह बेंगलुरु तक पहुंचता है। केरल के इदुक्की, मून्नार, और तमिलनाडु के कम्बम थेनी, मुंडकयम भी ड्रग्स सप्लाई के महत्वपूर्ण रूट्स हैं।
एयर रूट्स: हवाई रास्तों से तस्करी
विशेषज्ञों के अनुसार, हवाई मार्ग से ड्रग्स केन्या और नाइजीरिया से आता है, जो ज्यादातर गोवा और मुंबई में खपता है।
म्यांमार: सबसे बड़ा खतरा
लक्ष्मीप्रिया विजयन, जो मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (एमएएचई) से भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्नातकोत्तर हैं, के अनुसार म्यांमार भारत के लिए ड्रग्स के नजरिए से सबसे खतरनाक है। भारत का पश्चिमी हिस्सा गोल्डन क्रिसेंट (अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान) से प्रभावित हो रहा है, जबकि पूर्वोत्तर गोल्डन ट्राएंगल (म्यांमार, थाईलैंड, लाओस) से प्रभावित है। म्यांमार में मेथामफेटामाइन का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है, जिसे “याबा” के नाम से भी जाना जाता है। म्यांमार का तख्तापलट और वहां की अस्थिर स्थिति भारत के लिए एक गंभीर खतरा बन रही है।
समंदर के रास्ते तस्करी बढ़ी
हाल में आई यूएन की वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2024 के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम एशिया में गुप्त मेथामफेटामाइन निर्माण बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र के रास्ते आने वाले मेथामफेटामाइन की तस्करी में वृद्धि हुई है। 2020 में जहां समुद्र के रास्ते जब्त मेथामफेटामाइन का प्रतिशत 8 था, वह 2022 में 13% और 2023 में 18% तक पहुंच गया है। यह समुद्री तस्करी में वृद्धि को दर्शाता है।
तस्करी के बढ़ने के कारण
तस्कर खुद को खतरे में डालकर ड्रग्स लाते हैं।
कोई भी सिक्योरिटी फुलप्रूफ नहीं होती है।
टूरिस्ट ड्रग्स पसंद करते हैं, इसलिए तस्करी रुक नहीं रही है।
म्यांमार का अस्थिर होना तस्करी के लिए उपजाऊ जमीन बना हुआ है।
क्यों रुक नहीं पा रही तस्करी?
जी श्रीकुमार मेनन के अनुसार, ड्रग्स तस्करी इसलिए नहीं रुक पा रही क्योंकि कानून कमजोर और धीमा है। नाइजीरिया और कीनिया के लोग सिर्फ ड्रग्स कैरियर होते हैं। ये लोग बेल पर छूटकर फरार हो जाते हैं। ड्रग्स तस्करी में बहुत पैसा है, इसलिए पूरा अंडरवर्ल्ड इसमें शामिल है।
कहां किस ड्रग्स की खपत?
वेस्ट बंगाल में याबा, मुंबई और बेंगलुरु में कोकीन, और केरल में एकस्टेसी की खपत काफी ज्यादा है। हेरोइन की खपत मुंबई और दिल्ली में अधिक है। कोकीन महंगा होने के कारण इसका ज्यादा उपयोग फिल्म और फैशन इंडस्ट्री में होता है।
इस स्थिति को देखते हुए भारत को ड्रग्स तस्करी के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए और अधिक सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।