हेमा मालिनी,सांसद ,मथुरा ने “एक पेड़ मां के नाम” मुहिम को आगे बढ़ाया
जिलाधिकारी, चंद्रप्रकाश सिंह और अन्य अधिकारियों ने विभिन्न जगह किया पौधा रोपण
सतीश मुखिया मथुरा- हम लोग गंगा दशहरा और विश्व पर्यावरण दिवस मना चुके है और अगले की तैयारी में जुट गए हैं। हम लोगों को आजाद हुए लगभग 75 वर्ष बीत चुके हैं और आज केंद्र सरकार और राज्यों की सभी सरकार विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक पेड़ मां के नाम पर लगाने की मुहिम चला रहे हैं लेकिन क्या हकीकत में यह मुहिम लगातार चल पाएगी इस पर सवाल और संदेह पैदा होता है …
हर साल करोड़ राशि मिलने के बावजूद यमुना अब भी मैली…
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमे मिला दूं लगे उस जैसा…..जी हां, यह बिल्कुल सत्य है कि पानी को जिस रंग में मिलाओ वह उसी रंग का हो जाता है और भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में मां यमुना का पानी दूषित हो गया है क्यों कि दिल्ली और मथुरा वृंदावन के सभी नाले यमुना नदी में गिरते हैं। यमुना यमराज की बहन है और धर्म शास्त्रों के अनुसार जो यमुना स्नान कर लेता है उसका यमराज भी कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन आज गंगा दशहरा का पर्व है और जो आम श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करने नहीं जा पाए। उन्होंने मथुरा में आज यमुना में ही स्नान करना उचित समझा लेकिन नगर निगम मथुरा वृंदावन के अथाह प्रयास और भरपूर व्यवस्थाओं के बाद भी मां यमुना के घाटों पर श्रद्धालुओं की संख्या काफी कम मात्रा में नजर आई। इनमें बाहरी श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रही और स्थानीय लोग कम ही नजर आए। नगर आयुक्त जग प्रवेश और महापौर विनोद अग्रवाल तथा अन्य अधिकारी अनिल कुमार सागर ,अपर नगर आयुक्त, सी पी पाठक, अपर नगर आयुक्त, अभिलाष चौधरी, प्रोजेक्ट हेड नेचर ग्रीन कंपनी,कल्पना सिंह चौहान ,सहायक नगर आयुक्त, डॉ गोपाल बाबू गर्ग, नगर स्वास्थ्य अधिकारी, महेश चंद्र,जोनल स्वास्थ्य अधिकारी, राकेश राजपूत सेनेटरी इंस्पेक्टर व अन्य निगम कर्मचारी के द्वारा गंगा दशहरा पर्व के दृष्टिगत, यमुना किनारे घाटों पर सफाई व्यवस्था, प्रकाश, बेरीकेटिंग सुरक्षा,चेंजिंगरूम, शुद्ध पेयजल,खोया पाया कैंप आदि की समुचित व्यवस्था कराई गई और गंगा दशहरा पर्व के पावन अवसर पर नगर निगम के सभी उच्च अधिकारी पर्व के सफल आयोजन हेतु यमुना घाटों पर उपस्थित रहकर व्यवस्थाओं का लगातार निरीक्षण कर रहे हैं। गंगा दशहरा पर्व स्नान को सफल बनाने हेतु जिलाधिकारी चंद्रप्रकाश सिंह, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्लोक कुमार और उनके निर्देशन में जिले की सभी विभागों की टीम इन व्यवस्थाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु नगर निगम की टीम के साथ घाटों पर उपस्थित है।
जब हम लोगों ने ग्राउंड पर कुछ भक्तों से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि मां यमुना को हर साल करोड़ों रुपए का फंड केंद्र सरकार और राज्य सरकार के द्वारा मिलता है लेकिन आप देख सकते हैं कि इसमें गंदगी की भरमार है और आम नागरिक इसमें कैसे स्नान करें, यहां वहां जहां-तहां कूड़े कचरो का ढेर लगा हुआ है और एक तरफ इसमें पशु नहा रहे हैं दूसरी तरफ हम मनुष्य स्नान कर रहे हैं अब इसे आप क्या कहेंगे…
सरकार द्वारा प्रतिवर्ष साफ सफाई और स्वच्छता के लिए करोड़ों रुपए की धनराशि यमुना सफाई के लिए दी जा रही है लेकिन सफाई कहां है यह आप देख सकते हैं, हम लोग सनातन धर्म को मानने वाले लोग हैं अब यमुना मैली हो ,जल पीने लायक हो या ना हो,पानी गंदा हो हम लोगों को तो स्नान करना ही है ,अगर बीमार होंगे तब देखेंगे वह भी भगवान श्री कृष्ण की इच्छा ही होगी। नगर निगम मथुरा वृंदावन में साफ सफाई और कूड़ा प्रबंधन का कार्य नेचर ग्रीन प्राइवेट लिमिटेड और किंग सिक्योरिटी ग्रुप के हवाले है।
हम लोग 50 साल पूर्व से विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मानते हैं, यह दिवस खाना पूर्ति के अलावा और कुछ नहीं है, इसको बंद करना चाहिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। केंद्र सरकार और राज्य सरकारकठोर नियमों को लागू करें । जिससे जनता इसकी महत्वता समझे और पर्यावरण को बचाने हेतु अपना योगदान दे। आज हमारे यहां सभी नदियां पानी के बिना संकट से जूझ रही हैं जिसमें गंगा ,जमुना , सरयूं , बेतवा , सोन और न जाने कितनी अन्य नदियां हैं जो कि आज सुख गई है या सूखने के कगार पर हैं।उत्तरांचल से लगभग 100 से ज्यादा नदियां समाप्त हो गई हैं। उत्तर प्रदेश में भी लगभग यही हाल है। नदियों की क्षमता से लगभग 55000 हेक्टेयर की सिंचाई होती थी जो आप मात्र 25000 हो रही है । इन सब के पीछे औद्योगिकरण है और मनमाने ढंग से विकास है उत्तर प्रदेश की लखनऊ राजधानी में गोमती नदी के दोनों किनारो को दोनों किनारो पर अवैध कब्जा बना हुआ है इसमें सिंचाई विभाग भी कुछ नहीं करता, सरकार भी कुछ नहीं करती है। कोई मंदिर बना रहा है तो कोई मस्जिद बना रहा है वाराणसी क्षेत्र के वरुणा नदी में 80 नालों का गंदा पानी गंगा नदी में गिरता है और अयोध्या के कैंट एरिया का नाला गुप्ता घाट के पास सरयू में गिरता है। इसी तरह अनेक जगहों पर यमुना( जमुना) का तो हाल ही बेहाल है प्रयागराज क्षेत्र में दारागंज का नाला, बलुआ घाट का नाला, रसूलाबाद का नाला गंगा में गिरता है और कानपुर की बात ही निराली है वहां के सभी नाल गंगा नदी में गिरते हैं।
पर्यावरण के नाम पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा भारी भरकम राशि विज्ञापन के ऊपर खर्च की जाती है लेकिन वह विज्ञापन सोशल मीडिया में ही रह जाता है और जमीनी हकीकत पर नहीं उतर पाता।सरकार प्रचार करती है कि नदियां सुखी जा रही हैं और गंगा नदी जैसी पवित्र नदी कानपुर में नहाने लायक नहीं है ,वही हाल आपके बलिया क्षेत्र में भी है। स्थानीय नागरिकों ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और न्यायालयों द्वारा इस संबंध में विशेष दिशा निर्देश और गाइडलाइन दिए जाएं क्योंकि यदि नदी नहीं रहेगी तो सभ्यता और देश दोनों नहीं बचेंगे और पर्यावरण अवसर पर अनेकों फंक्शन होते हैं , केवल फोटो खींचने के लिए होते हैं ।अब वह समय आ गया है कि सिर्फ सोशल मीडिया पर विज्ञापन नहीं देना है अपितु पेड़ों को लगाने के लिए जमीनी स्तर पर एक आंदोलन चलाने की आवश्यकता है अन्यथा जब पेड़ ही नहीं रहेंगे तो पर्यावरण नहीं रहेगा ऐसे में आम जीवन की कल्पना करना बिल्कुल व्यर्थ है।