संजीव मिश्र
उत्तम खेती मध्यम बान, निषिध चाकरी भीख निदान अर्थात खेती सबसे अच्छा काम है, व्यापार मध्यम है, नौकरी निषिद्ध है और भीख मांगना सबसे बुरा काम है। जनकवि घाघ ने जब यह दोहा लिखा होगा उस समय खेती-किसानी न सिर्फ सम्मानजनक पेशा था, बल्कि किसान सबसे ज्यादा खुशहाल था। लेकिन आजादी के बाद कृषि क्षेत्र की उपेक्षा के चलते हालात इस कदर बिगड़ गए कि कृषि न केवल घाटे का सौदा बन गई, बल्कि किसान आत्महत्या करने को विवश हुआ। अब जलवायु परिवर्तन के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
अध्ययनों की मानें तो अकेले भारत में 2050 तक वष्रा-आधारित चावल की पैदावार 20 प्रतिशत और 2080 में 47 प्रतिशत तक की कमी की आशंका है। जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित संयुक्त राष्ट्र के अंतरसरकारी पैनल की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले दो दशकों में वैिक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस या इससे भी अधिक की बढ़ोतरी होगी जिसका असर पानी की उपलब्धता से लेकर कृषि और खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। भारत सरीखे देशों को तो ग्लोबल वार्मिंंग से उपजी परिस्थितियां खास परेशान करेंगी क्योंकि भूजल का 89 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र ही उपयोग करता है। इसलिए तापमान बढऩे से भारत जैसे देशों में खेती पर दूरगामी असर पड़ेंगे। भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है, मगर कुल वैिक जल संसाधनों का 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है। बावजूद इसके आजादी के बाद दशकों तक सरकारों द्वारा कोई ठोस प्रयास नहीं किया जाना समझ से परे है।
दरअसल, सरकारों के लिए किसान राजनीतिक मोहरा रहे जिन पर राजनीति तो खूब हुई लेकिन उनकी स्थिति सुधारने, आमदनी बढ़ाने, खेती को घाटे से फायदे का सौदा बनाने के प्रति गंभीर प्रयास नहीं किए गए। यही वजह है कि किसानों की स्थिति में सकारात्मक सुधार नहीं हुए। इस लिहाज से पिछला दशक भविष्य के प्रति आस्त करता है। 2014 में सरकार बनने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की आय बढ़ाने के साथ टिकाऊ खेती की योजना बनाई। 2016 में सरकार ने कृषि आय को दोगुना करने के तरीकों का सुझाव देने के लिए गठित समिति की सिफारिशों पर तेजी से अमल किया जिसमें सबसे अहम है प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना। दुनिया की सबसे बड़ी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम माने जाने वाली इस योजना में देश के 11 करोड़ से अधिक किसानों को 2.61 लाख करोड़ रु पये से अधिक का लाभ मिला है।
सरकार किसानों को कई तरह की सब्सिडी भी दे रही है। र्फटलिाइजर सब्सिडी का बजट ही प्रति वर्ष 2 लाख करोड़ रु पये से अधिक है। सरकार टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने और वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के प्रति भी सजग है। एक राष्ट्र-एक र्फटलिाइजर जैसी पहल, नीम और सल्फर कोटेड यूरिया इस दिशा में उठाया गया ठोस कदम है। सरकार अब पर ड्राप, मोर क्रॉप का लक्ष्य, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई टेक्नोलॉजी को अमल लाकर जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए एक सूक्ष्म सिंचाई कोष की स्थापना भी की गई है जिसके लिए राज्यों को 18,000 करोड़ से अधिक की केंद्रीय सहायता जारी की गई है। सरकार कृषि में व्यापक बिजली खपत के लिए सौर ऊर्जा का विकल्प भी दे रही है।
समय अब परंपरागत खेती की जगह अत्याधुनिक संसाधनों से खेती का है। खुद प्रधानमंत्री भी अक्सर इनोवेटर्स और रिसर्चर्स से आग्रह करते हैं कि प्रति इंच जमीन पर ‘अधिकाधिक फसल’ के बारे में सोचें। कृषि आय बढ़ाने की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को बजट से आंका जा सकता है। कृषि और संबद्ध गतिविधियों के बजट को 4.35 गुना बढ़ाकर 2013-14 के 30,223 करोड़ से 2023-24 में 1.3 लाख करोड़ रु पये से अधिक किया गया है। सरकार भी प्रत्येक किसान को किसी न किसी रूप में औसतन 50,000 रु पये प्रदान कर रही है।
इन सबके सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं। एनएसएसओ के हालिया सिचुएशन असेसमेंट सर्वे (2018-19) के अनुसार, मासिक कृषि घरेलू आय 2012-13 में 6,426 से बढक़र 2018-19 में 10,218 रु पये हो गई। दरअसल, मोदी सरकार ने ‘सहकार से समृद्धि’ के स्वप्न को साकार करने हेतु एफपीओ के गठन का निर्णय लिया था। आज एफपीओ किसानों की उन्नति के पर्याय बन गए हैं। अकेले समुन्नति संस्था 6500 से अधिक एफपीओ के साथ मिल कर 8 लाख से अधिक किसानों के जीवन में बदलाव लाई है। समुन्नति के माध्यम से सकल लेन देन का आंकड़ा 22,000 करोड़ से ऊपर पहुंच गया है। सरकार को इन संस्थाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि किसानों की आमदनी बढऩे के साथ-साथ खेती फायदे का सौदा साबित हो सके।