कोचिंग सेंटर हादसे पर दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस और एमसीडी को लगाई फटकार

नई दिल्ली। दिल्ली के कोचिंग हब कहे जाने वाले ओल्ड राजेंद्र नगर के राव आईएएस कोचिंग सेंटर में 3 यूपीएससी कैंडिडेट्स की मौत से देशभर में हड़कंप मचा हुआ है. अब तक कई राज्य सरकारों ने कोचिंग सेंटर्स पर कार्रवाई करते हुए उनके बेसमेंट को सील कर दिया. वहीं हादसे के बाद दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने नियमों का उल्लंघन करने वाले 13 कोचिंग सेंटर सील किए हैं. इस मामले पर अब दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई, यूपीएससी छात्रों की मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी है. कोर्ट ने शुक्रवार को पुलिस और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को फटकार लगायी और कहा कि वह यह समझ नहीं पा रही है कि विद्यार्थी बाहर कैसे नहीं आ सके. दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई फिर से शुरू कर दी है जिसमें यूपीएससी उम्मीदवारों की मौत की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग की गई है.

शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान एमसीडी कमिश्नर और दिल्ली पुलिस डीसीपी मौजूद थे. एक याचिकाकर्ता के वकील ने घटना में एक पुलिस चौकी की संलिप्तता को उजागर करते हुए आरोप लगाया कि इस स्थिति में दिल्ली पुलिस की मिलीभगत हो सकती है. एमसीडी वकील ने कहा कि राउ कोचिंग सेंटर को छोड़कर सभी के खिलाफ कार्रवाई की गई है, क्योंकि इसे केस प्रॉपर्टी माना जाता है. कोर्ट ने एमसीडी कमिश्नर से इस बात पर जोर देते हुए पूछा कि शहर की उम्मीदें उनके कार्यों पर टिकी हैं. अदालत ने पूछा कि क्या गाद निकालने का काम किया गया था. इसके अतिरिक्त, अदालत ने डीसीपी से पूछा कि क्या जांच अधिकारी (आईओ) ने क्षेत्र के मजबूत जल नालों के नक्शे एकत्र किए हैं. डीसीपी ने जवाब दिया कि इस मामले में एमसीडी अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया है.

पीठ ने सवाल किया कि एमसीडी अधिकारियों ने क्षेत्र में बरसाती नालों के ठीक ढंग से काम नहीं करने के बारे में आयुक्त को सूचित क्यों नहीं किया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि एमसीडी अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है और यह एक सामान्य बात हो गई है. अदालत ने पुलिस पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘जिस तरह से आपने वाहन चालक को वहां कार चलाने के लिए गिरफ्तार किया, गनीमत है कि आपने बेसमेंट में घुसने वाले बारिश के पानी का चालान नहीं काटा.’ अदालत को सूचित किया गया कि जिस क्षेत्र में घटना घटी, वहां जल निकासी व्यवस्था लगभग न के बराबर थी, सड़कें अस्थायी नालियों के रूप में काम कर रही थीं. उच्च न्यायालय ने व्यक्त किया कि वास्तविक दोषियों को छोड़ कर निर्दोषों को दंडित करना घोर अन्याय होगा.

अदालत ने दिल्ली पुलिस को तथ्यों का स्पष्ट विवरण प्रदान करने का भी निर्देश दिया, यह कहते हुए कि ऐसा करने में विफल होना अस्वीकार्य होगा और इसकी तुलना ‘ब्रदर्स क्लब’ दृष्टिकोण से की जाएगी. हाई कोर्ट ने प्रभावशीलता की कमी के लिए सार्वजनिक प्राधिकरणों की आलोचना करते हुए कहा, ‘सार्वजनिक प्राधिकरण इन दिनों काम नहीं कर रहे हैं.’ अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, यह कहते हुए कि सत्ता के पदों पर बैठे लोगों को भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि क्या उन्होंने बिल्डिंग प्लान को मंजूरी देने वाले व्यक्ति से पूछताछ की है. अदालत ने यह भी पूछा कि क्या जांच अधिकारी की केस डायरी में उल्लेख किया गया है कि मजबूत जल निकासी गैर-कार्यात्मक थी.

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