नई दिल्ली। सीपीआई (एम) के महासचिव और देश के प्रमुख वामपंथी नेता सीताराम येचुरी का गुरुवार को दिल्ली एम्स में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 19 अगस्त को निमोनिया जैसे सीने के संक्रमण के इलाज के लिए एम्स में भर्ती किए गए थे और उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट पर रखा गया था। उनका इलाज के दौरान निधन हो गया।
सीताराम येचुरी को भारतीय कम्युनिस्ट राजनीति में एक प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता था। उन्होंने 1977-78 में तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष पद को संभाला और उसके बाद सीपीएम में सक्रिय हुए। पार्टी के महासचिव पद तक पहुंचने के साथ-साथ वे सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी रहे।
गठबंधन निर्माण में अहम भूमिका
सीताराम येचुरी को पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की गठबंधन निर्माण की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता है। 1996 में उन्होंने संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का मसौदा तैयार किया था, जिसमें पी. चिदंबरम का सहयोग लिया। इसके अलावा, 2004 में यूपीए सरकार के गठन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
आपातकाल के खिलाफ संघर्ष
1975 में आपातकाल के दौरान येचुरी ने प्रतिरोध संगठित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई थी, जिसके चलते उन्हें जेल भी भेजा गया था। सीपीएम के छात्र विंग, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के तीन बार प्रमुख बने येचुरी ने 32 सालों तक पोलित ब्यूरो की सीट संभाली। 2015 में प्रकाश करात के बाद वे पार्टी के महासचिव बने और तीन कार्यकालों तक इस पद पर रहे।
राजनीतिक जगत में शोक
उनके निधन पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने शोक व्यक्त किया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “सीताराम येचुरी एक बहुत अच्छे इंसान, बहुभाषी ग्रंथप्रेमी, व्यावहारिक प्रवृत्ति वाले निर्दयी मार्क्सवादी, सीपीएम के स्तंभ और एक शानदार सांसद थे। उनमें अद्भुत बुद्धि और हास्य की भावना थी। सबसे दुखद बात यह है कि वह अब नहीं रहे।”
सीताराम येचुरी की विरासत भारतीय राजनीति में लंबे समय तक जीवित रहेगी, और उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।