चूंकि लोकसभा चुनाव परिणाम में कोई भी पार्टी बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं छू सकी है, इसलिए इतना तय है कि केंद्र में गठबंधन सरकार होगी। बेशक, भाजपा 240 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, लेकिन बहुमत के आंकड़े 272 से यह संख्या काफी कम है। हालांकि भाजपा नीत गठबंधन की सीटों की संख्या 292 है, जबकि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के पास 233 सीटें हैं। इसलिए गठबंधन सरकार बनाने की कवायद दोनों तरफ से तेज हो गई है। साफ है कि सरकार बनाने में जदयू और तेलुगू देशम की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी। ये दोनों अभी भाजपा के सहयोगी दल हैं।
जदयू भाजपा नीत एनडीए गठबंधन के महत्त्वपूर्ण घटक है, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन के नेता दोनों दलों से संपर्क साधने में जुट गए हैं। इसलिए कि उन्हें लगता है कि इन दलों और भाजपा का सहयोग-साथ स्वाभाविक नहीं है, और भाजपा के साथ इन दलों के नेता सहज महसूस नहीं करते। जदयू के नेता नीतीश कुमार और तेलुगू देशम के नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ ही रालोद मुखिया जयंत चौधरी, लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान समेत छोटे दलों पर भी ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं की नजर है।
नीतीश कुमार से मल्लिकार्जुन खरगे, शरद पवार जैसे ‘इंडिया’ गठबंधन के बड़े नेताओं को खास उम्मीद है क्योंकि इस गठबंधन के शिल्पकार नीतीश ही थे। बाद में घटनाक्रम ऐसा रहा कि वे स्वयं को ‘इंडिया’ गठबंधन में ‘उपेक्षित’ महसूस करने लगे और अपने समर्थकों के साथ भाजपा नीत एनडीए का हिस्सा बन गए। लेकिन राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। तेलुगू देशम के चंद्रबाबू नायडू से भी ‘इंडिया’ गठबंधन को खासी उम्मीद है।
दोनों नेता, हालांकि बाकायदा भाजपा के साथ हैं, लेकिन जिसके भी साथ होंगे सत्ता का पलड़ा उसके पक्ष में झुकाने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं। वैसे अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि किसी तरफ के घटक दल को अपने साथ ले आना इतना आसान नहीं होता।
चूंकि किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला है, इसलिए तोड़-जोड़ का खेल तेज होगा। आने वाले दिनों में एनडीए और ‘इंडिया’ के घटक दलों की यहां-वहां आवाजाही देखने को मिलेगी। बेशक, बदले हालात में राजनीतिक दलों की परिपक्वता कसौटी पर होगी। अलबत्ता, इतना साफ है कि मतदाता ने परिपक्वता दिखला दी है। सभी विशेषज्ञों के अनुमान से परे जाकर न तो किसी एक दल या गठबंधन को बहुमत दिया है, और न ही विभिन्न राज्यों में मतदान की दृष्टि से एक समान रुख दिखाया है।