बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को बड़ा झटका देते हुए उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा भू आवंटन मामले में उनके विरुद्ध दी गई जांच की मंजूरी को चुनौती दी थी। यह मामला मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) द्वारा पॉश क्षेत्र में उनकी पत्नी को किए गए 14 भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है।
क्या था मामला?
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पर आरोप है कि उनकी पत्नी बीएम पार्वती को मैसूर के एक पॉश इलाके में मुआवजे के रूप में आवंटित किए गए भूखंड की कीमत, प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत की गई जमीन की तुलना में बहुत अधिक थी। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि पार्वती का उस जमीन पर कोई कानूनी अधिकार नहीं था, जिसके बदले उन्हें भूखंड मिले।
कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इस मामले पर 12 सितंबर को फैसला सुरक्षित रखते हुए मंगलवार को यह आदेश दिया। न्यायमूर्ति ने कहा कि याचिका में बताए गए तथ्यों की जांच आवश्यक है, क्योंकि इस पूरे प्रकरण से लाभार्थी याचिकाकर्ता का परिवार ही है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आज तक प्रभावी सभी अंतरिम आदेश समाप्त हो जाएंगे।
राज्यपाल की मंजूरी और याचिका की चुनौती
राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत सिद्धरमैया के खिलाफ जांच की मंजूरी दी थी। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने 19 अगस्त को इस मंजूरी को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने राज्यपाल के आदेश को बिना समुचित विचार के जारी किया गया बताया और इसे वैधानिक आदेशों तथा संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन बताया।
हाई कोर्ट में पक्ष-विपक्ष की दलीलें
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया का पक्ष मशहूर वकील अभिषेक मनु सिंघवी और प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने रखा, जबकि राज्यपाल का पक्ष सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने रखा। शिकायतकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह और अन्य ने दलीलें दीं।
क्या हैं आरोप?
मामले में आरोप है कि सिद्धरमैया की पत्नी को जो भूखंड दिए गए थे, वे एमयूडीए द्वारा विकसित की गई जमीन के 50:50 अनुपात में आवंटित किए गए थे, लेकिन उनकी कीमत अधिग्रहीत जमीन की तुलना में बहुत अधिक थी।
क्या होगा आगे?
कोर्ट के इस फैसले के बाद, अब विशेष अदालत (जनप्रतिनिधि) में सिद्धरमैया के खिलाफ शिकायत की सुनवाई शुरू होगी, जो पहले हाई कोर्ट के आदेश के कारण स्थगित थी। यह मामला मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक और कानूनी रूप से बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है, जिसे वे अब हाई कोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में ले जाने पर विचार कर सकते हैं।