Date:

दवा कंपनियों से उपहार या आर्थिक लाभ लेने पर पाबंदी

डॉ ईश्वर
भारत सरकार ने दवा कंपनियों द्वारा चिकित्सकों एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मियों या उनके परिवारों को व्यक्तिगत लाभ मुहैया कराने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए संहिता जारी की है।  इस संहिता- यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (यूसीपीएमपी) 2024- के तहत इस नियमन को लागू करने की जिम्मेदारी कंपनियों की होगी।  अपने उत्पादों को बेचने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को उपहार, यात्रा सुविधा, हॉस्पिटैलिटी, नगदी आदि देने की शिकायतों के निपटारे के लिए फार्मा कंपनियों को एक एथिक्स कमिटी बनानी होगी, जिसमें तीन से पांच सदस्य होंगे।  इस समिति के प्रमुख बोर्ड के सीइओ होंगे।  इस कमिटी की जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध करानी होगी।  कोड में स्पष्ट कहा गया है कि नियमन के पालन के लिए कंपनी के सीइओ जिम्मेदार होंगे।  उन्हें हर वित्त वर्ष की समाप्ति के दो माह के भीतर यह घोषणा देनी होगी कि उनकी कंपनी नियमों का पालन कर रही है और उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को किसी भी तरह का व्यक्तिगत लाभ नहीं दिया जा रहा है।  कोड में ऐसे किसी व्यक्ति को मुफ्त सैंपल दवा देने की भी मनाही है, जो ऐसे किसी उत्पाद को मरीजों को देने के लिए योग्य नहीं है।  जो सैंपल दवा डॉक्टरों को दिये जाते हैं, उनका मूल्य कंपनी के कुल घरेलू बिक्री के दो प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।  पिछली बार फार्मास्यूटिकल डिपार्टमेंट ने ऐसा नियमन 2014 में लाया था।

ऐसा नियमन इसलिए करना पड़ा है क्योंकि ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जिनमें बड़ी बड़ी कंपनियां डॉक्टरों को विदेश यात्रा पर ले जाती हैं।  ऐसा भी होता है कि कंपनियां स्वास्थ्यकर्मियों के निजी उत्सवों, मसलन जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ आदि, का खर्च उठाती हैं।  महंगे उपहार भी दिये जाते हैं।  इसके बदले में वे कंपनियां अपना कारोबार बढ़ाना चाहती हैं।  यह एक तरह का लेन-देन है कि हम आप पर खर्च कर रहे हैं और आप हमारे उत्पाद की बिक्री बढ़ाने में मदद करें।  कोई भी कंपनी अपने उत्पाद के प्रचार-प्रसार के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम और उपाय करती है।  वैसा ही माहौल मेडिकल पेशे में भी आ गया।  इस पेशे में अपनी जानकारी को समय-समय पर बढ़ाना तथा दूसरे चिकित्सकों के अनुभवों से सीख लेना जरूरी होता है।  इसके लिए सम्मेलन, वर्कशॉप और सेमिनार होते हैं।  इसका मतलब यह होता है कि ऐसे आयोजनों से अपनी जानकारी बढ़ाकर हम अपने मरीजों को बेहतर उपचार मुहैया करायें।  हर डॉक्टर को मेडिकल काउंसिल में अपने पंजीकरण का हर पांच साल में नवीनीकरण कराना होता है और उसके लिए 30 क्रेडिट प्वाइंट का विवरण जमा करना होता है।  इसके लिए कम से कम 120 घंटे के शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेना होता है।  किसी भी अन्य पेशे में ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ती।

अगर यह बाध्यता चिकित्सकों के लिए सरकार की तरफ से निर्धारित है, तो ऐसे कार्यक्रम भी सरकार, मेडिकल काउंसिल और विश्वविद्यालयों की ओर से आयोजित किये जाने चाहिए।  लेकिन ऐसा होता नहीं है।  ऐसी स्थिति में चिकित्सक एसोसिएशनों को अपने स्तर पर इस तरह के कार्यक्रम करने पड़ते हैं और जहां खर्च करने की बात आती है, तो दवा कंपनियां खर्च करती हैं क्योंकि उन्हें ऐसे कार्यक्रमों से लाभ होता है।  लेकिन इस संबंध में नियम यह स्थापित किया गया है कि प्रायोजक कंपनियों के उत्पादों को मुख्य सम्मेलन कक्ष में प्रदर्शित नहीं किया जाता है और न ही उसके उत्पादों के नाम के साथ आयोजन का प्रचार होता है।  अब होता यह है कि गलत करने वाले लोगों के कारण सही करने वालों पर भी आंच आती है।  ऐसे में इस तरह के कार्यक्रमों को नहीं रोका जाना चाहिए या फिर सरकार को उसके लिए वैकल्पिक इंतजाम करना चाहिए।  ऐसा नहीं होने से कंपनियों और डॉक्टरों का एक गलत गठजोड़ बनेगा।

चिकित्सा के क्षेत्र में जो भी गड़बड़ियां हैं, उन्हें दूर करने के लगातार प्रयास होने चाहिए।  इस संदर्भ में भारत सरकार का नया नियम एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।  इस क्षेत्र में कुछ लोग खराब हो सकते हैं, पर हमें ऐसी मानसिकता नहीं रखनी चाहिए कि महामारी या आपात स्थिति में तो डॉक्टर भगवान है, पर बाकी समय वह शैतान है।  अगर हम कंपनियों और डॉक्टरों की वित्तीय मिलीभगत को प्रभावी ढंग से रोकना चाहते हैं, तो हमें भारी-भरकम फीस लेकर दी जाने वाली मेडिकल शिक्षा को भी नियंत्रित करना चाहिए।  हाल में निजी मेडिकल कॉलेजों में अधिक फीस को लेकर कुछ कदम उठाये गये हैं, पर अभी उनका असर देखा जाना बाकी है।

महंगी शिक्षा इस पेशे में आ रही गड़बड़ियों का मुख्य कारण है।  नये नियमों में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कंपनी का कोई व्यक्ति डॉक्टरों को निजी लाभ देकर अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने का प्रयास करेगा, तो उस पर समुचित कार्रवाई कर उसकी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।  अब यह देखना है कि कंपनियां कितनी गंभीरता से इसका पालन करती हैं।  डॉक्टरों को भी यह समझना चाहिए कि लालच में किसी दवा या अन्य उत्पाद की बिक्री बढ़ाने में सहयोगी बनना पेशे और मरीजों के साथ अन्याय है।  कुछ डॉक्टरों की वजह से पूरे पेशे पर दाग लगता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top