नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर बड़ा फैसला सुनाते हुए 1967 में पांच जजों की बेंच द्वारा दिए गए निर्णय को रद्द कर दिया। 1967 के इस फैसले में कहा गया था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसे केंद्रीय कानून द्वारा स्थापित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को तीन जजों की नई बेंच के पास भेजा है, जो अब इस पर पुनः विचार करेगी।
आज का फैसला 4-3 के बहुमत से सुनाया गया, जिसमें कहा गया कि कोई संस्थान केवल इसलिए अल्पसंख्यक दर्जा नहीं खो सकता क्योंकि उसे कानून द्वारा स्थापित किया गया है। कोर्ट का कहना है कि यदि विश्वविद्यालय की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। इसके लिए तीन जजों की बेंच नई सुनवाई करेगी।
सरकार का बदला रुख और कानूनी लड़ाई
इस मुद्दे पर 2016 में एनडीए सरकार ने अपना रुख बदलते हुए 1981 के एएमयू अधिनियम में संशोधन को अस्वीकार कर दिया और 1967 के फैसले के पालन पर जोर दिया। हाई कोर्ट ने 2006 में एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ है कि 1967 का निर्णय मान्य नहीं रहेगा, और तीन जजों की नई बेंच एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्णय करेगी।