चारधाम यात्रा में नकली कस्तूरी और शिलाजीत की धड़ल्ले से बिक्री, वन विभाग बेखबर

उत्तरकाशी: चारधाम यात्रा के पवित्र अवसर पर जहाँ लाखों श्रद्धालु ईश्वर के दर्शन के लिए गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे तीर्थ स्थलों का रुख कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नकली कस्तूरी, शेर के पंजे और शिलाजीत की अवैध बिक्री यात्रियों के विश्वास और प्रदेश की जैव विविधता दोनों पर सवाल खड़े कर रही है।

गंगोत्री और यमुनोत्री धाम क्षेत्र में एक संगठित गिरोह नकली और प्रतिबंधित वस्तुएं खुलेआम बेच रहा है। इन लोगों का दावा है कि ये उत्पाद उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों या नेपाल से लाए गए हैं, और खुद को स्थानीय निवासी या नेपाल का नागरिक बताकर यात्रियों को भ्रमित कर रहे हैं।

कस्तूरी में मिलाया जा रहा इत्र, शिलाजीत और रुद्राक्ष भी फर्जी
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, नकली कस्तूरी पर इत्र छिड़ककर उसे असली दर्शाया जा रहा है, जबकि शिलाजीत व रुद्राक्ष को भी नेपाल या ऊंचाई वाले जंगलों का उत्पाद बताकर बेचा जा रहा है। एक मुखी से पंचमुखी रुद्राक्ष तक की आड़ में यात्रियों से भारी धन वसूली हो रही है।

स्थानीय निवासी सतेंद्र सेमवाल बताते हैं कि ये विक्रेता महाराष्ट्र, हरिद्वार और हैदराबाद जैसे स्थानों से आकर खुद को पहाड़ी बताते हैं, जिससे यात्री आसानी से भ्रमित हो जाते हैं। उनके अनुसार, प्रशासन की अनदेखी से यह धंधा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रशासनिक चुप्पी से गहरी होती चिंता
हालांकि वन विभाग के डीएफओ डीपी बलूनी का कहना है कि यह सामान नकली होता है और समय-समय पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। अब तक कोई ठोस और सतत अभियान देखने को नहीं मिला है, जिससे इस अवैध व्यापार पर लगाम लगाई जा सके।

धार्मिक यात्रियों से हो रही ठगी और जैव विविधता को खतरा
चारधाम यात्रा की पवित्रता पर ऐसे नकली व्यापार से प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। इसके साथ ही जैविक संपदा जैसे कस्तूरी मृग, दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ और संरक्षित प्रजातियाँ भी इस झूठे व्यापार की आड़ में बदनाम हो रही हैं।

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