10 वर्षों से पर्यावरण की सेवा में समर्पित संजय चमोली: ‘संरक्षित पौधारोपण’ और ‘जल संरक्षण’ का बना रहे आंदोलन

देहरादून। उत्तराखंड के एक छोटे से गांव देवीपुर (ईस्ट होप टाउन) से ताल्लुक रखने वाले संजय चमोली पर्यावरण प्रेम की मिसाल बनते जा रहे हैं। बीते 10 वर्षों (2014 से) से वह लगातार पर्यावरण संरक्षण और जल संचयन के कार्यों में जुटे हुए हैं।

संजय चमोली घर-घर जाकर संरक्षित और सुरक्षित पौधारोपण को बढ़ावा दे रहे हैं। उनका कहना है कि “केवल पौधे लगाना ही नहीं, बल्कि उनका संरक्षण करना भी उतना ही जरूरी है।” इसी सोच के साथ वे लोगों को प्रेरित करते हैं कि लगाए गए पौधों की देखभाल भी उतनी ही जिम्मेदारी से करें।

वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के लिए संजय जंगलों में ‘चाल-खाल’ (छोटे जलग्रहण गड्ढे) बनाते हैं और घरों में वर्षा का पानी संग्रह करने के लिए गड्ढे तैयार कर उसे संरक्षित करते हैं, ताकि भूजल स्तर में गिरावट न आए।

ग्रामीणों के सहयोग से उन्होंने हजारों पौधों का रोपण किया है। उनका कहना है, “चाहे पौधे हजार लगें या लाख, महत्वपूर्ण यह है कि वे जीवित रहें और फलें-फूलें।” इसी संदेश को लेकर संजय ‘संरक्षित और सुरक्षित पौधारोपण’ की मुहिम चला रहे हैं।

संजय चमोली ने ‘100 डेज विद नेचर’ (100 दिन पर्यावरण के साथ) अभियान भी चलाया था, जिसमें पौधारोपण, जल संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा दिया गया।

हाल ही में उन्होंने एक 100 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा भी की, जो पछवादून (सभावाला, देहरादून) से शुरू होकर जंगलों के रास्ते शाकुंभरी देवी (सहारनपुर) तक संपन्न हुई। इस यात्रा में ग्रामीणों ने भी उत्साहपूर्वक भागीदारी की। यात्रा का उद्देश्य पर्यावरण और जल संरक्षण का संदेश जन-जन तक पहुंचाना था।

संजय चमोली का कहना है, “जब तक शरीर में सांसें हैं, तब तक पर्यावरण और जल संरक्षण का कार्य करता रहूंगा।” वे सभी से आग्रह करते हैं कि पृथ्वी को हरा-भरा रखने और जल स्रोतों को बचाने के लिए सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए।

जल्द ही संजय एक और पैदल यात्रा की योजना बना रहे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य रहेगा—पर्यावरण और जल संरक्षण का संदेश जनसामान्य तक पहुंचाना।

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