GM मक्का: भारत में मक्के की कमी को दूर करने का एकमात्र उपाय या छलावा

डॉ ममतामयी प्रियदर्शिनी

बाजार में मक्के की लगातार बढ़ती मांग के कारण आज यह किसानों के लिए आकर्षक फसल बनता जा रहा है | GM मक्का के आयात का समर्थन करने लोगों का कहना है कि भारत में मक्के की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए GM ही एकमात्र उपाय है| इथेनॉल उत्पादकों द्वारा मक्के की आपूर्ति के लिए इस होड़ के बीच, पोल्ट्री उद्योग, जोकि अपने खाद्य आपूर्ति के लिए मक्का पर बहुत हद तक निर्भर है, ने केंद्र सरकार से GM मक्का और सोयामील के आयात की अनुमति देने का आग्रह किया है । वर्तमान में भारत में विभिन्न स्तरों पर आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) या Non-GM मक्के के किस्मों को अपनाने के बीच एक सार्थक बहस लगातार जारी है । GM मक्के के समर्थक दावा करते हैं कि GM फसलें तात्कालिक रूप से मक्के की उपज और उसकी खपत के बीच की खाई को पाटने में एक हद तक मदद कर सकती है, परंतु अगर बारीकी से देखा जाए तो GM मक्के को आगे बढ़ाने और भारत में उसे किसानों तक पहुंचाने के दरमियान कई आशंकाएं जताई जा रही है जिनके बारे में जिम्मेदारी पूर्वक गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है ।
तो क्या जीएम मकई, भारत की मक्का मांग में वृद्धि की आपूर्ति को पूरा करने का एकमात्र उपाय है? इसे एकमात्र विकल्प के रूप में जल्दबाजी में समर्थन देने से पहले, क्या हमें भारत में बीटी कपास के दौरान हुए पिछले कड़वे अनुभवों का आकलन नहीं करना चाहिए? जीएम कॉटन को भारत में सन 2002-2003 में लाया गया था, और 2007-08 तक, भारत में लगभग 90% कपास के फार्म में जीएम कॉटन का उत्पादन होता था I इसके बाद भी, कपास की उपज बढ़ी नहीं बल्कि कपास की सामान्य मात्रा में लगभग 23% की गिरावट आई, जो वित्तीय वर्ष 2008 में 554 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2024 में 429 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (एक अनुमानित आंकड़ा) हो गई। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान, बांग्लादेश में नॉन GM कपास की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 263 किलोग्राम/ हेक्टेयर से बढ़कर 737 किलोग्राम/हेक्टेयर तक हो गई। भारत में, बीटी कपास के क्षेत्र में अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां उत्पादित कपास की मात्रा उतनी की उतनी ही रह गयी पर उत्पादन लागत जरूर बढ़ गई है I परिणामस्वरूप, वे किसान जिन्होंने इसे उपजाने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी दांव पर लगा दी थी, आज वे अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं I हाँ, इतना जरुर हुआ कि कुछ कम्पनिया जो इसे बढ़ावा दे रही थीं, या जिनके हाथों में इन बीजों की टेक्नोलोजी का पेटेंट था वे जरूर अमीर हो गयीं I अभी भी, बीटी कपास के उपज में इस गिरावट के पीछे का कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है।
यूरोपीय देशों में सरकारें किसानों को आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) मकई के बजाय गैर-जीएम मकई उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। उनके यहाँ जीएम मकई के आयात पर प्रतिबंध है। यद्यपि जीएम बीजों में कीट प्रतिरोध और शाकनाशी सहनशीलता के गुण होते हैं फिर भी वहां के बाजारों में प्राकृतिक या जैविक उत्पादों की ज्यादा मांग है I इसलिए वहां गैर-जीएम मकई को अधिक कीमतों पर बेचा जाता है। आज के जमाने में जब खाद्यान्नों में पारदर्शिता तथा उनका भोजन कहां से आता है, इसकी लोगों को ज्यादा परवाह है, गैर-जीएम मक्का एक ऐसा विकल्प प्रस्तुत करता है जो महंगी जीएम तकनीक पर निर्भरता को कम करता है, संभावित रूप से किसानी की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाता है।

हाल में ही एक न्यूज़, हर मीडिया की सुर्ख़ियों में है जिसके अनुसार मेक्सिको ने भी आनुवंशिक रूप से संशोधित मक्के पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। मेकवे चैरिटेबल सोसाइटी की एक परियोजना, कैनेडियन बायोटेक्नोलॉजी एक्शन नेटवर्क के समन्वयक लुसी शारट द्वारा प्रकाशित एक लेख के अनुसार, जीएम मकई पर मेक्सिको के प्रतिबंध लगाने का मुख्य उद्देश्य जीएम संदूषण से देशी मकई की अखंडता को बचाना और मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना है। कैनेडियन बायोटेक्नोलॉजी एक्शन नेटवर्क किसानों और पर्यावरण समूहों का एक बड़ा नेटवर्क है जो तक़रीबन 15 वर्षों से भी अधिक समय से आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएम) के उपयोग का अध्ययन कर रहा है। इस संस्था के अनुसार, उनका शोध, जीएम कीट-प्रतिरोधी मकई के सेवन से मनुष्यों को होने वाले संभावित नुकसान के संकेतकों को उजागर करना है। उन्होंने शोध में पाया है कि जीएम कॉर्न पौधे को कीट प्रजातियों को मारने के लिए जेनेटिक रूप से संशोधित किया जाता है, जो मिट्टी के बैक्टीरिया बैसिलस थुरिंगिएन्सिस (Bacillus thuringiensis ) से एक विष को उत्पन्न करता है, जिसे कुछ विशेष प्रकार की कीटों को हानि पहुंचाने के लिए जाना जाता है I किसानों ने लंबे समय से कीटों से निपटने के लिए स्प्रे के रूप में बीटी का उपयोग किया है, लेकिन जीएम फसलों में बीटी विषाक्त पदार्थ संरचना, कार्य और जैविक प्रभावों में भिन्न होते हैं। कई अध्ययनों में लगातार ये बात सामने आ रही है कि जीएम पौधों में BT का जहर उन कीड़ों (उदाहरण के लिए मधुमक्खियों, ततैया, भिंडी और लेसविंग) को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं जिनको मारना उनका लक्ष्य नहीं हैं।
भारत, अपने गैर-जीएम के दर्जे को बरकरार रखते हुए मक्का उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है, ये हमारे लिए ये गर्व की बात है I आंध्र प्रदेश और बिहार के कई जिले जो गैर-जीएम मकई की खेती करते हैं, वहां मक्के की उपज, संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल जीएम मकई की उपज ~10 टन/ हेक्टेयर के बराबर हैं। यदि भारत में अन्य मक्का उगाने वाले क्षेत्र भी, इन राज्यों की कृषि पद्धतियों का अनुकरण करने लगें, तो बहुत जल्द हीं, अखिल भारतीय मक्के का उत्पादन वर्तमान 33 मिलियन टन से बढ़कर 65 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। अभी भी, भारत की मक्का उत्पादन वृद्धि दर वैश्विक औसत से कहीं अधिक है। अतः, पोल्ट्री और ईंधन क्षेत्रों (इथेनॉल) की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत में जीएम मक्का लाने की कोई अनिवार्यता समझ नहीं आ रही ।
भारत में, मक्के की खेती के लिए समर्पित कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 75% हिस्सा हाइब्रिड मक्के का है। उच्च उपज वाले हाइब्रिड बीजों के उपयोग के कारण मक्के के पैदावार में अच्छी वृद्धि हुई है, जो इस अवधि में 2.5 मीट्रिक टन/हेक्टेयर से बढ़कर 3.0 मीट्रिक टन/हेक्टेयर हो गई है I गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में, मक्का के किसानों ने उन्नत संकर बीजों के उपयोग को अपनाया है। निजी बीज कंपनियां, पहले से ही उच्च उपज देने वाली एकल क्रॉस-संकर किस्में, जो मुख्य रूप से जो पारंपरिक किस्मों और पुराने संकरों की जगह ले सकती हैं,को विकसित करने में लगातार लगी हुई हैं I क्षेत्रीय वितरण के संदर्भ में, शीर्ष 5 राज्य भारत के कुल मक्का उत्पादन में लगभग 55% का योगदान देते हैं, जिनमें कर्नाटक (15%), मध्य प्रदेश (14%), तेलंगाना (10%), तमिलनाडु (9%) और आंध्र प्रदेश (7%) शामिल हैं।
निष्कर्ष के तौर पर, हमें अंधाधुंध विकास की दौड़ में क्षणिक आवेश में आकर, GM मक्के को अपनाने की होड़ में अपने किसानो के हित को ध्यान में रखना चाहिए I हमें उनके कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए और अपनी जैव विविधता, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए उनकी आर्थिक स्थिति को अच्छा करने के रास्ते तलाशने चाहिए। इसलिए, भारत में हाइब्रिड गैर-जीएम बीजों को बढ़ावा दिया जाए तो देश की आत्मनिर्भरता के साथ साथ ये किसानो की आर्थिक समृद्धि की कुंजी साबित होगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top