नई दिल्ली। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बहाली को लेकर हिंसक प्रदर्शन जारी है. इस बीच बांग्लादेश में हजारों की संख्या में भारतीय स्टूडेंट भी फंसे हुए हैं, जिन्हें वापस स्वदेश लाने की तैयारी जारी है. शुक्रवार को 300 से अधिक छात्रों को सीमा पार से भारत सुरक्षित लाया गया. बता दें कि हिंसक झड़प में अब तक करीब 64 लोगों की जान जा चुकी है. भारतीय छात्रों को किसी भी उपलब्ध साधन का उपयोग करके घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा है. बांग्लादेश में जारी विरोध प्रदर्शन को लगभग 3 हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन ना ही सरकार की तरफ से कोई आश्वासन दिया गया है और ना ही प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार है. वहीं, भारत सरकार इस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए हैं.
भारत ने कहा- ये उनका आंतरिक मामला
शुक्रवार को भारत ने बांग्लादेश में हिंसक विरोध-प्रदर्शन को शुक्रवार को उस देश का ‘‘आंतरिक’’ मामला करार दिया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि 8,000 छात्रों सहित लगभग 15,000 भारतीय वर्तमान में बांग्लादेश में रह रहे हैं और वे सुरक्षित हैं. ढाका और अन्य शहरों में विश्वविद्यालय के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों को आरक्षित करने की प्रणाली के खिलाफ कई दिनों से रैलियां कर रहे हैं. बृहस्पतिवार को आरक्षण प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान राजधानी ढाका तथा अन्य जगहों पर हिंसा भड़कने से करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है तथा 2,500 से अधिक लोग घायल हुए हैं.
बंग्लादेश में इंटरनेट लगभग पूरी तरह बंद
ढाका विश्वविद्यालय में हिंसा भड़कने के बाद बीते सोमवार विरोध प्रदर्शन काफी बढ़ गया है. अगले दिन छह लोग मारे गए, जिसके बाद सरकार को देश भर में विश्वविद्यालयों को बंद करने का आदेश देना पड़ा. जो छात्र लौटे उनमें से कई एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर रहे थे और उनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मेघालय और जम्मू-कश्मीर से थे। शुक्रवार को लौटने के लिए छात्रों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दो प्रमुख मार्ग अगरतला में अखौरा सीमा बिंदु और मेघालय में डावकी एकीकृत चेकपोस्ट थे. छात्रों ने कहा कि वे इंतजार कर रहे थे और देख रहे थे, लेकिन आखिरकार उन्होंने बांग्लादेश में अस्थायी तौर पर छोड़ने का फैसला किया क्योंकि गुरुवार को इंटरनेट लगभग पूरी तरह से बंद कर दिया गया और टेलीफोन सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुईं, जिससे वे प्रभावी रूप से अपने परिवारों से कट गए.