पार्टी का डंडा झंडा उठाते-उठाते फजीतू को आखिर मिल ही गई लाल बत्ती
क्षेत्र में चुनाव है, जुगाड़ तंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की क्षेत्र में जन सभाएं है, इसकी जिम्मेदारी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता फजीतू को दी गयी है, फजीतू को क्षेत्र में राजनीति का चाणक्य माना जाता हैं। फजीतू ने जनसभा स्थल पर टेंट, कुर्सी, माईक आदि की सारी व्यवस्था कर ली है। जुगाड़ तंत्र के सभी दिग्गज नेता पहुचने लगे हैं, इस बार का चुनाव पार्टी के लिये खास है, इसलिये साम दाम दंड भेद सब हथियार आजमाए जा रहे हैं। फजीतू ने गाँव गाँव से ध्याडी पर लोगो की भीड़ इकट्ठी कर ली है। पार्टी के अध्यक्ष और अन्य नेता सभा स्थल पर पहुँच गए हैं, फजीतू सबका स्वागत करने पर लगा है, कभी इधर दौड़ रहा है कभी पानी तो कभी चाय की व्यवस्था पर लगा है, इतनी भाग दौड़ तो उसने अपने परिवार की शादी में भी नही की थी। प्रदेश अध्यक्ष ने अपने चुनावी भाषण में फजीतू की बहुत तारिफ की, और कहा कि अगर हमारी सरकार बनती है, तो फजीतू को उसकी मेहनत का फल मिलेगा, आपके क्षेत्र की समस्या हमारी समस्या मानकर हम इसका निराकरण सर्वप्रथम करने का आश्वशन दिया गया। जनता ने काफी तालियां बजायी।
जनसभा समाप्त हुई और लोग नेता सब घर चले गये, लेकिन फजीतू की जिम्मेदारी बढ़ गयी क्योकि उसके लिए यहाँ से अपनी सीट जितवानी थी। उसने पार्टी अध्यक्ष को फोन कर कहा कि हम जीत तो जायेगे लेकिन इस बार खर्चा बढ़ जाएगा, विपक्ष ने भी पूरी तैयारी कर ली है।
क्षेत्र के उम्मीदवार ने कहा कि भाई फजीतू दारू, मीट, धन बल सबकी व्यवस्था हो जाएगी बस तुम लोगो पर नजर रखो। फजीतू ने घर घर गाँव गांव जाकर पार्टी का खूब प्रचार प्रसार करने पर लगा है, सबको इतना पिला दिया है कि बस उनका नशा उतरने का नाम नही ले रहा है। इधर चुनाव प्रचार खत्म हो गया है, फजीतू ने रात रात लोगो को गाड़ियों में बिठाकर मंदिर ले जाकर दिया जलाकर कसम खिला दी कि सब वोट जुगाड़ तंत्र पार्टी को देगें। अगले दिन चुनाव हुए और जुगाड़ तंत्र पार्टी को बम्फर वोट भी पड़ गए, और उम्मीदवार जीत गया। इसका श्रेय फजीतू को मिला। पार्टी ने उसका सम्मान कर एक किनारा कर दिया।
फजीतू जुगाड़ तंत्र पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता है, उसने जबसे होश संभाला तब से वह हर छोटे से बड़े चुनाव में पार्टी के नेताओं के लिये झंडे डंडे उठाये, दरी बिछाई, कुर्सी लगायी। एक कार्यकर्ता के रूप में संगठन के साथ कभी बगावत नहीँ की। पूरी उम्र फजीतू की पार्टी के लिए निकल गयी, कई ब्लॉक प्रमुख बनाये, जिला पंचायत जिताये, विधायक से लेकर सांसद तक के लिए खूब जोर शोर से प्रचार प्रसार किया। एक परिपक्व उम्र में और वरिष्ठ होने के नाते उसकी उम्मीदों को पंख लगने लगे, आशा बढ़ने लगी, पत्नी के ताने सुन सुनकर परेशान फजीतू को लगने लगा कि राजनीति में सब्र का फल मीठा नहीं होता है, लेकिन संगठन की पकड़ से वह बगावत नही कर पाता है।
फजीतू को विपक्षी पार्टियों ने कई लालच दिए मगर उन्होंने कभी दूसरी पार्टियों के साथ समझौते नही किये। पिछले चुनाव में भी फजीतू को टिकट नही दिया गया, पार्टी का अंदुरुनी मामले बताकर, संगठन की दुहाई देकर फजीतू को फिर वही झंडे डंडे बोकने वाला बनाकर रखने में पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे फजीतू कुशल वक्ता तो है, जनता के साथ उसका व्यवहार भी अच्छा है, लेकिन पार्टी हमेशा उसे नजरअंदाज कर देती है, क्योकि उसके पास टिकट खरीदने के लिए करोड़ो रूपये जो नही है।
फजीतू को आने वाले चुनाव में टिकट मिलने की आशा तो है, मगर हर बार पैराशूट प्रत्याशी उनका हक छीन लेता है, लेकिन इस बार पार्टी ने उनका दायित्व धारी राज्यमंत्री का दर्जा देकर लाल बत्ती वाली गाड़ी का लॉलीपॉप थमा दिया है। लेकिन फजीतू को उम्मीद है कि अगले चुनाव में उसकी भाग्य रेखा शायद जनता पढ़ लेगी। क्या फजीतू को टिकट मिल पाता है या नही इसका इंतजार हमे भी रहेगा।
नोट: यह व्यंग्य और काल्पनिक मात्र है, इसका वास्तविकता या किसी व्यक्ति विशेष और घटना से कोई संबंध नही है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।